देश की आर्थिक राजधानी मुंबई हर समय बॉलीवुड और अधिक बरसता को लेकर चर्चा में रहती है। राजनीति को लेकर महाराष्ट्र की चर्चा कम ही होती है। पर उद्धव ठाकरे के राज में महाराष्ट्र हर दिन अखबार के किसी कोने में देश की जनता से संवाद कर रहा होता है। इस बार राज्य अपनी राजनीति को लेकर काफी चर्चा में है। शिव सेना को लूटेरी सरकार घोषित कर दिया गया है। वहीं एनसीपी को महावसूली आघाड़ी सरकार नाम दिया गया है। महाराष्ट्र में राजनीतिक भूचाल मचा हुआ है। इसका पूरा श्रेय मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह को जाता है। परमबीर ने राजनीतिक गलियारों में वो तूफान मचाया हुआ है कि, जिसे शांत करने के लिए राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस तूफान के सामने देशमुख का इस्तीफा भी उड़ गया। आंधी अपनी रफ्तार में चल रही है।

संजय बर्वे के बाद परमबीर को मुंबई पुलिस की कमान सौंपी गई थी। लेकिन मार्च माह में परमबीर का अचानक होमगार्ड डिपार्टमेंट में ट्रांसफर कर दिया गया। गृहमंत्री ने दावा किया था कि, परमबीर की कुछ गलतियों को माफ नहीं किया जा सकता जिसके कारण उनका ट्रांसफर करना पड़ा। ट्रांसफर का पूरा खेल सचिन वाजे से शुरू होता है।

दरअसल मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर जिलेटिन की कुछ छड़ बरामद हुई थी। जांच में खुलासा हुआ था कि, यह कांड करने वाला मुंबई पुलिस का क्राइम ब्रांच का अधिकारी सचिन वाजे ही था। इसके बाद वाजे को क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार कर लिया था। कुछ समय बाद वाजे को एनआईए ने गिरफ्तार किया और पूछताछ करने लगी। इस बीच परमबीर का ट्रांसफर हुआ। अपने ट्रांसफर से नाराज परमबीर ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक खत लिख, अनिल देशमुख पर जबरन वाजे से वसूली का आरोप लगाया था। इस खते के बाद मुंबई की राजनीति में आया भुचाल शांत नहीं हुआ है। सभी आरोपों को देशमुख और एनसीपी नेता शरद पवार खारिज करते रहे। मामले को फंसता देख परमबीर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर परमबीर सिंह की याचिका खारिज कर दी कि, आप पहले हाईकोर्ट जाइए। हाईकोर्ट से परमबीर सिंह की जीत हुई, कोर्ट ने मामले को सीबीआई जांच का आदेश दे दिया। कोर्ट के इस फैसले के बाद पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख ने पद से इस्तीफा दे दिया। इस दौरान अनिल देशमुख ने कहा था कि, कोर्ट ने मेरे खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दिया है। अब मैं इस पद के लायक नहीं हूं।

अनिल देशमुख ने सोचा की पद से इस्तीफा देने के बाद मामला ठंडा हो जाएगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। देशमुख ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। यहां पर देशमुख की मुश्किल और बढ़ गई है।

परमबीर सिंह के बाद एनआईए की गिरफ्त में रहने वाले, साचिन वाजे ने भी पत्र लिखा है। सचिन वाजे के इस पत्र में कई नेताओं को फंसते हुए देखा जा  सकता है। इसमे अनिल देशमुख, परिवहन मंत्री अनिल परब, अजीत पवार जैसे नेताओं का नाम शामिल है।

सचिन वाजे पत्र लिख बताते है कि, “मैं मार्च 2004 से सस्पेंड था। 6 जून 2020 से मैं दोबारा बहाल हुआ। बहाली के तुरंत बाद एक रोज गृहमंत्री अनिल देशमुख ने नागपुर से मुझे फोन पर कहा कि कुछ लोग मेरी बहाली के खिलाफ हैं। उन्होंने ये भी कहा कि शरद पवार भी नहीं चाहते कि मेरा सस्पेंशन खत्म हो। इसके बाद अनिल देशमुख ने मुझसे कहा कि वो शरद पवार साहब को मना लेंगे। लेकिन इसके बदले उन्होंने मुझसे 2 करोड़ रुपये मांगे। मैंने इतनी बड़ी रकम देने में मजबूरी बताई। इस पर गृहमंत्री ने कहा कि कोई नहीं बाद में कभी दे देना। इसके बाद मुझे क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट में बहाली मिल गई। जनवरी 2021 में मैं गृहमंत्री अनिल देशमुख के सरकारी बंगले पर उनसे मिला। गृहमंत्री के पीए कुंदन भी तब मौजूद थे। तब गृहमंत्री ने मुझसे मुंबई में मौजूद करीब 1650 बार और रेस्ट्रां से वसूली करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि हर रेस्ट्रां से 3 से साढ़े 3 लाख रुपये कलेक्ट करो। तब मैंने उन्हें ये कहा था कि मुंबई में 200 के करीब ही बार और रेस्ट्रां हैं 1650 नहीं। मैंने उनसे ये भी कहा कि मैं इस पोजीशन में नहीं हूं कि बार और रेस्ट्रां से वसूली कर सकूं। क्योंकि ये मेरे अधिकार क्षेत्र के बाहर है। इस पर गृहमंत्री के पीए मि. कुंदन ने मुझे सलाह दी कि मैं अगर अपनी नौकरी और पोस्ट बचाए रखना चाहता हूं तो वही करूं जो गृहमंत्री जी ने कहा है। गृहमंत्री के साथ हुई इस मीटिंग के फौरन बाद मैंने सीपी सर (कमिश्नर परमबीर सिंह) को सारी बात बता दी थी। मैंने उनसे ये भी कहा था कि बहुत मुमकिन है कि आने वाले दिनों में मुझे किसी झूठे केस में फंसा दिया जाए। तब सीपी सर ने मुझे साफ साफ ये कहा था कि गैर कानूनी तरीके से वसूली के इस काम में किसी के भी कहने पर शामिल मत होना।”

यहां पर सचिन वाजे ने अनिल परब को घसीटा है। वाजे पत्र में लिखते हैं, “जुलाई-अगस्त 2020 में मंत्री अनिल परब ने मुझे अपने सरकारी बंगले पर बुलाया था। ये वही हफ्ता था, जब अगले तीन चार दिनों में मुंबई के डीसीपी के इंटरनल ट्रांसफर का फैसला होना था। मुलाकात के दौरान अनिल परब ने SBUT के खिलाफ चल रही किसी जांच का हवाला देते हुए कहा कि इसके ट्रस्टी को समझौते के लिए मैं उनके पास लेकर आऊं। अनिल परब ने मुझसे ये भी कहा कि मैं SBUT के ट्रस्टी से बात करूं और जांच को बंद करने के लिए 50 करोड़ रुपये मांगू। तब मैंने मंत्री जी के सामने अपनी मजबूरी जताई कि ना तो मैं SBUT में किसी को जानता हूं और ना ही मामले की जांच मेरे अख्तियार में है। जनवरी 2021 में अनिल परब ने फिर से मुझे अपने सरकारी बंगले में पर बुलाया। उन्होंने मुझसे बीएमसी की लिस्ट में शामिल कुछ कांट्रैक्टर की जांच करने को कहा। जिनके खिलाफ पहले से ही जांच चल रही थी। मंत्री अनिल परब ने मुझे ऐसे 50 कांट्रैक्टर से कम से कम 2 करोड़ रुपये कलेक्ट करने को कहा। इन कांट्रैक्टरों के खिलाफ शिकायत किसी गुमनाम शख्स ने की थी। सीआईयू ने कांट्रैक्टर के खिलाफ जांच शुरु भी की थी। लेकिन जांच में कुछ नहीं निकला।”

आखिर में वाजे ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को आड़े हाथ लिया है। पवार के बारे में वाजे लिखते है, “नवंबर 2020 में दर्शन घोदावत नाम का एक शख्स मेरे पास आया। उसने अपना परिचय देते हुए कहा कि वो उपमुख्यमंत्री अजीत पवार का बेहद करीबी है। दर्शन ने मुझे महाराष्ट्र में गुटका और तंबाकू के अवैध धंधे की पूरी जानकारी दी। यहां तक की फोन नंबर भी दिए। उसने मुझसे गुटका और तंबाकू का अवैध कारोबार करने वाले लोगों से हर महीने सौ करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा, जब मैंने ऐसा करने से इंकार किया तो उसने मुझे धमकी दी कि मैं अपनी नौकरी खो दूंगा। 2021 में पहले ही दिन से मैंने कानून के दायरे में रहते हुए मुंबई में करोड़ों रुपये का अवैध गुटका और तंबाकू ज़ब्त किया और दोषियों के खिलाफ एक्शन भी लिया। ऐसी ही एक कार्रवाई के बाद दर्शन घोदावत मेरे दफ्तर आए और मुझसे कहा कि इस कार्रवाई से उपमुख्यमंत्री बेहद नाराज़ हैं। उसने मुझे गुटका और तंबाकू बनाने वाले मैनूफैक्चरर को या तो उससे या फिर उपमुख्यमंत्री से मिलने को कहा। मैंने साफ इनकार कर दिया।”

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