18 जुलाई से शुरू हो रहे संसद सत्र में केंद्र सरकार के सामने मुख्य चुनौती उन 18 विधेयकों को पास कराने की होगी जो फिलहाल लटके पड़े हैं। इन विधेयकों में तीन तलाक और OBC आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने से जुड़े बिल भी शामिल हैं। इसके साथ ही सरकार कई अध्यादेशों को भी इस मानसून सत्र में पास करा लेना चाहती है।

इनमें से एक भगोड़ा आपराधिक अध्यादेश 2018 विधेयक है जो खासा महत्वपूर्ण है।  इस कानून के तहत अपराध कर देश से भागे व्यक्तियों की संपत्ति उन पर मुकदमे का फैसला आए बिना जब्त करने और उसे बेच कर कर्ज देने वालों का पैसा वापस करने का प्रावधान है। इसके अलावा, 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए गए लोगों को फांसी देने संबंधी अध्यादेश, आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 को पास कराने की प्राथमिकता भी सरकार की होगी।

वहीं इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड 2016 में बदलाव करने के लिए केन्द्र सरकार बीते साल एक अध्यादेश लेकर आई थी।  अध्यादेश के मुताबिक विलफुल डिफॉल्टर (स्वेच्छा से दिवालिया हुए) और एक साल या अधिक समय से NPA घोषित हुए लोन लेने वाले लोगों को किसी तरह के समाधान की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा सकेगा।

पिछली बार विपक्ष ने आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा, अविश्वास प्रस्ताव, SC/ST एक्ट पर हंगामा किया था। इस बार उम्मीद जताई जा रही है कि विपक्ष, किसान, कश्मीर औऱ दलितों के मुद्दे पर सरकार को घेर सकता है।

मानसून सत्र के बाद मौजूदा लोकसभा के शीतकालीन सत्र और बजट सत्र ही बाकी बचेंगे। इसके बाद लोकसभा चुनाव का वक्त आ जाएगा। ऐसे में सरकार की मंशा लंबित पड़े बिलों को पास कराने की होगी। 18 जुलाई से शुरू होकर 10 अगस्त तक चलने वाले संसद के मानसून सत्र में कुल 18 कार्यदिवस होंगे और इन 18 दिनों में सरकार के सामने विपक्ष के हंगामे को ध्यान मे रखते हुए अध्यादेशों और बिलों को पास कराने की बड़ी चुनौती होगी।

—ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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