यूपी में योगी की रणनीति फेल हो गई है..बबुआ और बुआ ने बीजेपी को तत्काल शिकस्त दे दी है.. हार का कारण कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपेक्षा और गुटबाजी को बताया जा रहा है…हार पर विपक्षी दल गदगद है लेकिन बीजेपी काट ढूंढने में लगी है… दो सीट पर बीजेपी की हार से विपक्षी दल ये समझ रहे हैं कि उन्होंने बीजेपी को धूल चटा दिया है अब मिशन 2019 उनके लिए एकतरफा हो गया है.. ये बहुत ही जल्दबाजी होगी… क्योंकि यूपी में योगी भले ही फेल हुए हैं.. लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नीति से विपक्ष 2014 से हारती रही है… अब मुकाबला मोदी-शाह से ही होगा…मायावती और अखिलेश आगे गठबंधन करेंगे या नहीं अभी तय नहीं हैं…कुछ दिन के लिए साथ था या आगे के लिए भी साथ रहेगा…अगर साथ आएंगे तो मुखिया कौन होगा? दोनों में मोदी जैसे नेतृत्व क्षमता भी नहीं है.. ऐसे में मोदी और शाह को मात दे पाना मुश्किल है…

उत्तर प्रदेश की सियासी फिजा में कहीं खुशी है तो कहीं गम… दो सीट की हार और जीत पर हाहाकार मची है… दो सीट पर बीजेपी को शिकस्त देकर समाजवादी पार्टी का हौसला बुलंद  है…कुछ दिन पहले किनारे हो चुकी समाजवादी पार्टी अब सांतवे आसमान पर पहुंच गई है… योगी को योगी के गढ़ में हराकर सपा गदगद है… सपा समेत सभी विपक्षी दलों ने बीजेपी को कमजोर बताना शुरू कर दिया है… विपक्षी दलों के लिए ये जीत संजीवनी है लेकिन इस जीत से ये अंदाजा लगाना कि बीजेपी काफी कमजोर हो गई.. बीजेपी खत्म हो गई.. ये बहुत ही जल्दबाजी होगी… यूपी में बीजेपी प्रचंड बहुमत से जीती है… अभी भी बीजेपी और सहयोगियों को मिलाकर 71 सांसद हैं ऐसे में ये पूरे यूपी में हवा बदलने और बीजेपी को कमजोर समझना ठीक नहीं होगा…जीत की खुशी में अखिलेश बीजेपी पर लगातार तीर छोड़ रहे हैं…

बबुआ को बुआ का साथ मिला तो बीजेपी को मात दे दिया.. लेकिन ये भरोसा नहीं है कि बुआ-बबुआ का साथ आगे भी रहेगा या नहीं.. न ही अखिलेश ने पत्ता खोला है न ही मायावती ने… योगी को उन्हीं के गढ़ में मात मिली है तो मायावती भी बीजेपी पर हमलावर हो गई..

विपक्ष गदगद है  क्योंकि मायावती ने गोरखपुर और फूलपुर में सपा उम्मीदवार का समर्थन किया इसलिए भारी जीत हुई.. लेकिन मिशन 2019 में साथ रहेंगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है… फिलहाल बीजेपी भी हार पर मंथन कर रही है… अखिलेश और मायावती की काट ढूंढने में लगी है…

बीजेपी को धक्का जरूर लगा है लेकिन विपक्ष सिर्फ एक जीत से सब कुछ बदलने की बात कह रही है जो काफी जल्दबाजी है… अब सवाल उठता है कि बुआ-बबुआ ने उप-चुनाव में दम दिखाया है.. क्या ये दोस्ती आगे भी जारी रहेगी?. क्या मायावती और अखिलेश में गठबंधन आगे भी होगा.. अगर होगा तो गठबंधन का मुखिया कौन होगा.. क्या माया और अखिलेश मोदी को हराने के लिए कुर्बानी देंगे… क्या मायावती गेस्टहाउसकांड भूल पाएंगी… क्या मायावती उस अपमान की घूंट पी लेंगी.. अखिलेश के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगी… क्या अखिलेश मायावती को नेता मानेंगे.. क्योंकि ऐसा होना दोनों के लिए असंभव है.. मायावती किसी के अंदर में रहना नहीं चाहती.. लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है… योगी गोरखपुर से हार सकते हैं किसी ने नहीं सोचा था.. लेकिन ऐसा हुआ.. योगी की रणनीति फेल हुई लेकिन  2019 में मोदी-और अमित शाह की रणनीति के सामने विपक्ष कैसे खड़ा होता है ये सौ टके का सवाल है…

एपीएन ब्यूरो

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