देश में फिलहाल पीएम पद की कोई वैकेंसी नहीं है। लेकिन हर नेता की ख्वाहिश पीएम बनने की जरुर है। ऐसे में पीएम मोदी को पीएम के सिंहासन से उतारने के लिये विपक्षी पार्टियां अपना सब कुछ न्योछावर करने पर तुली हैं। क्या विरोधी और क्या क्ट्टर विरोधी सब मोदी विरोध के नाव को जहाज की गति से चलाना चाहते हैं। इसी का नतीजा है कि, सपा की छाया से दूर रहने वाली बीएसपी को अपने सियासी दुश्मन सपा से गलबहियां करने में कोई परहेज नहीं हुआ। साथ-साथ मिलकर यूपी में उपचुनाव लड़ीं। कांग्रेस इसमें कभी साथ तो कभी अलग दिखती रही लेकिन सबों का एजेंडा एक ही है मोदी हटाओ, देश बचाओ।

धुर विरोधी ममता भी कांग्रेस के साथ दिख रहीं हैं। वहीं ममता बनर्जी जिन्होंने कांग्रेस पर कई आरोप लगाकर तृणमूल कांग्रेस को खड़ा किया। अब वह पूरी ममता कांग्रेस और मोदी विरोधियों पर बरसा रहीं हैं। वहीं आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव भी पूरे ताव में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद को पीएम पद का दावेदार बता चुके हैं। लेकिन इससे विपक्ष में ही सिर फुटौव्वल की हालत बन गई। आखिरकार राहुल और कांग्रेस को बयान देने पड़े। वहीं अब लालू ने एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पीएम पद की दावेदारी पर तंज कसे हैं कहा, ये तो चुनाव बाद तय होगा।

वहीं लालू यादव ने पीएम मोदी और सीएम नीतीश पर जुबानी तीर चलाए कहा, IRCTC घोटाले में जानबुझकर उन्हें और उनके परिवार को फंसाया जा रहा है। पीएम मोदी देश को इमरजेंसी की तरफ ले जा रहे हैं। लालू का ये बयान सियासी है क्योंकि जब वो नीतीश के साथ थे तो नीतीश दूछ के धुले थे।

मोदी के नाम पर विपक्ष एकजुट, पीएम पद पर बंटा

वैसे, मिशन 2019 में 2014 दोहराने के लिये पीएम मोदी और पूरी बीजेपी लगी है। एनडीए कभी कमजोर तो कभी मजबूत होता दिखता है। हिंदी भाषी राज्य यूपी में उसे सपा-बसपा से तब कड़ी चुनौती मिलनी तय है जब 2019 में दोनों एक साथ आ जाएं। लेकिन यहां भी सीटों का पेंच फंसना तय है। रही बात कांग्रेस की तो मायावती और अखिलेश के साथ खड़े होना उसकी मजबूरी है क्योंकि इसी से वह थोड़ी मजबूत हालत में आ सकती है। वहीं ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में बीजेपी को हराने के लिये हरसंभव वार कर रहीं हैं। क्योंकि वहां बीजेपी का उभार ममता बनर्जी की पीएम पद की दावेदारी पर सियासी हथौड़ा मारेगा।

हालांकि बीजेपी को बिहार में फायदा होने की उम्मीद है। अगर उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन के साथ चले भी जाते हैं तो बीजेपी उन्हें अवसरवादी बताएगी। कुशवाहा को आगे बढ़ाने में नीतीश का ही सबसे बड़ा हाथ है। साल 2004 में नीतीश ने उन्हें जो इज्जत बख्शी वो बड़े-बड़े को भी सपने में नसीब नहीं होती। लेकिन अब वह नीतीश के नंबर वन सियासी दुश्मन बन चुके हैं। कुल मिलाकर 2019 मिशन की राह किसी के लिये आसान नहीं दिखती।

वैसे बीजेपी नीत एनडीए बिखरे विपक्ष से मजबूत तो हैं ही। जहां मोदी विरोध के नाम पर अपनी जहाज चलानेवाला हर नेता खुद को कैप्टन समझ रहा है और जमीनी रुप से ये कतई संभव नहीं है।

एपीएन ब्यूरो

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