साल 2016 में उत्तराखंड विधानसभा ने पर्वतीय क्षेत्रों में खेती को बढ़ावा देने के लिये के लिए छोटे और बिखरे खेतों को एक ही चक में लाने की दिशा में कदम बढ़ाया था। ‘उत्तराखंड पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जोत चकबंदी एवं भूमि व्यवस्था विधेयक-2016’ को मंजूरी दी थी। हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर के साथ ही कुछ पर्वतीय जिलों के मैदानी क्षेत्र इस कानून की परिधि से बाहर किये गये थे। जबकि, देहरादून, टिहरी, पौड़ी, नैनीताल और चंपावत के मैदानी क्षेत्रों को छोड़ समस्त पर्वतीय क्षेत्र को इसके दायरे में रखा गया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने चकबंदी के लिए चकबंदी परिषद बनाकर अभियान को आगे बढ़ाने के बड़े दावे किये थे। लेकिन दो साल बीतने के बावजूद त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार चकबंदी योजना को जमीन पर उतारने में नाकाम रही है।

साल 2017 के नवंबर महीने में त्रिवेंद्र सरकार ने चकबंदी अभियान के लिये शासनादेश जारी किया था। जिसके तहत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पैतृक जिले पौड़ी के यमकेश्वर ब्लॉक की ग्रामसभा सीला के राजस्व ग्राम पंचूर और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के तहसील सतपुली स्थित खेरा गांव में चकबंदी की शुरुआत हुई थी।

उत्तराखंड में 42 सालों की लंबी लड़ाई के बाद चकबंदी की शुरुआत सीएम योगी और सीएम त्रिवेंद्र के गांव से होने के आदेश से लोगों की उम्मीद बढ़ी थी। लेकिन ये आदेश भी बीतते समय के साथ ठंडे बस्ते में चला गया।

अब एक बार फिर प्रदेश में खत्म होती किसानी और लगातार होते पलायन से चिंतित त्रिवेंद्र सरकार ने चकबंदी के लिये मजबूत प्रय़ास करने का बड़ा दावा जरुर किया है। इसके लिये अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी।

चकबंदी के माध्यम से खेती को बहुत ही ज्यादा प्रोत्साहन मिलेगा। क्योंकि तब उनके खेतों के टुकड़े बड़े-बड़े होंगे। पीसीसी अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है।

चकबंदी नहीं होने से उत्तराखंड में कृषि घाटे का सौदा बनती गई और पलायन से हजारों गांव खाली हो गए। यूपी सरकार ने साल 1989 में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में चकबंदी करने का फैसला किया तो था लेकिन कोई योजना और नियमावली नहीं होने से 1996 में चकबंदी कार्यालय बंद कर दिए गए। चकबंदी होने से हर परिवार अपनी सुविधा और आवश्यकता के मुताबिक योजना बनाकर खेती कर सकेगा। गांव के गरीब भूमिहीनों को भी खेती के लिए जमीन मिल सकेगी। ऐसे में उत्तराखंड में चकबंदी के लिये संघर्ष कर लोगों के लिये ये योजना बेहद जरुरी है।

इससे उन भू-माफियाओं पर भी शिकंजा कसा जा सकेगा जो चकबंदी नहीं होने से कृषि और बंजर भूमि पर लंबे समय से कब्जा जमाए हुए हैं। वहीं आम किसान खुशहाली से कोसों दूर हैं। चकबंदी नहीं होने से गांव में खेत, सड़कों, पानी की निकासी से लेकर शौचालय तक के निर्माण में रोजाना विवाद भी होते रहते हैं। वहीं पलायन का दंश सबसे बड़ा है क्योंकि सरकार किसी की रहे या जाये जनता भूखे पेट भजन नहीं गा सकती।

एपीएन ब्यूरो 

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