कृष्ण की नगरी मथुरा में होली का पर्व शुरू हो गया है। यहां पर पहली होली वृंदावन में लड्डूओं के साथ खेली जाती है। लड्डूओं के साथ रंग भी होता है। लड्डू होली लट्ठमार होली से एक दिन पहले खेली जाती है। दरअसल होली का न्योता देने के लिए बरसाना से लोग वृंदावन आते हैं। बरसाना के लोगों का स्वागत करने के लिए लड्डू का इस्तेमाल किया जाता है। यहीं से लड्डू होली की शुरूआत होती है। बता दें कि, बरसाना राधा रानी का गांव है।

देश में कोरोना का माहौल चल  रहा है। लेकिन वृंदावन की होली में पर्यटकों की कोई कमी और डर नहीं देखा जा रहा है। कोरोना काल में भी कृष्ण के नाम पर लोगों ने जमकर लड्डू होला का आनंद लिया। बता दें कि, हर साल वृंदावन, नंदगांव और बरसाना में होली खेलने के लिए करीब पांच लाख पर्यटक आते हैं।

इस होली में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से भक्त बरसाना पहुंचते हैं और लड्डू होली का आनंद उठाते हैं। देश में सबसे सुंदर होली मथुरा में ही खेली जाती है। यहां पर तरह तरह की होली होती है। रंगों की होली, पानी की होली, फूल की होली, इत्र की होली, लड्डू की होली और लट्ठमार की होली।

बृज में लट्ठमार होली की परम्परा बेहद प्राचीन है और बरसाना को इसका केंद्र माना जाता है। बरसाने की लट्ठमार होली के विश्व प्रसिद्ध होने की वजह है इसका परंपरागत स्वरूप। कहा जाता है कि, नंदगांव से जब लोग बरसाना होली खेलने के लिए जाते हैं तो वहां की महिलाएं लट्ठ से आदमियों का स्वागत करती हैं। यहीं से लट्ठमार होली की शुरुआत होती है।

बरसाने के लाडली मंदिर में भी लड्डू होली खेली गई। इसे देखने के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़ पड़े, जिसमें श्रद्धालु पर पहले से राधारानी मंदिर के सेवायत द्वारा लड्डू फेंककर होली की शुरुआत की जाती है। इसके बाद श्रद्धालु अपने साथ लाए लड्डू एक-दूसरे पर मारकर होली का आनंद लेते हैं और नाचते-गाते हैं, गुलाल उड़ाते है, होली के रंग में रंग जाते हैं।

वृंदावन होली की खास बात ये है कि, यहां पर विधवा महिलाएं भी होली खेलती हैं। सभी विधवा महिलाएं पागल बाबा आश्रम में इकट्ठा होती हैं। वहां पर एक दूसरे को गुलाला लगा कर होली की बधाई देती हैं। इन महिलाओं के साथ बच्चे भी होते हैं।

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