इस बार का कर्नाटक विधानसभा चुनाव तीन पार्टियों के बीच ऐसी फंसी है कि पार्टियां भी सोचने पर मजबूर हो गई हैं कि उनकी खुद की सरकार बन पाएगी या नहीं?। वैसे तो इस जंग में देखा जाए तो बीजेपी हमेशा से ही बाजी मार ले जाती है लेकिन इस बार कांग्रेस ने भी पिछले अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है और इस बार बीजेपी के लिए कर्नाटक की सीएम कुर्सी अपने नाम करना आसान नहीं होगा। हालांकि हाल तो ये बयां कर रहे हैं कि अब राज्य के राज्यपाल की भूमिक इसमें मुख्य होगी। बता दें कि अनुमानतः बीजेपी ने 104 सीट, कांग्रेस ने 78, जेडीएस ने 37 और अन्य ने 3 सीटें अपने नाम की है( रुझानों के अनुसार) । ऐसे में बहुमत कौन बनाएगा ये किसी को नहीं पता। हालांकि चुनावी गणित देखा जाते तो जेडीएस के बिना बीजेपी और कांग्रेस अधूरे हैं। ऐसे में जेडीएस के पास ही सत्ता के दरवाजे की चाबी है।


इस चुनावी गुणा-गणित में राज्य के राज्यपाल भी मुख्य भूमिका अपनाएंगे। दरअसल, ऐसी परिस्थिति में कर्नाटक का भविष्य राज्यपाल के हाथों तय होगा। राज्य में सरकार किसकी बनेगी ये उनके उस फैसले पर निर्भर करेगा, कि किसे वो आमंत्रित करते हैं। कर्नाटक के राज्यपाल 80 साल के वजुभाई वाला ही ऐसी स्थिति में कमान संभाल रहे हैं। वजुभाई गुजरात में बीजेपी के प्रमुख नेताओं में से एक रहे हैं। खास बात ये है कि उन्होंने साल 2001 में मोदी के लिए अपनी सीट छोड़ दी थी, जब उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा था। जिस समय देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे वाजुभाई वित्तमंत्री थे। बतौर मुख्यमंत्री मोदी के 13 साल के कार्यकाल में वजुभाई 9 साल तक इस महत्वपूर्ण पद पर रहे। साल 2005-2006 के बीच वजुभाई राज्य में बीजेपी प्रमुख भी रहे।

वजुभाई राजकोट के एक व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। स्कूल के समय में ही वो आरएसएस से जुड़ गए थे। 1985 में पहली बार उन्होंने विधानसभा चुनावों के लिए नामांकन दाख़िल किया। इस सीट से वो सात बार जीते। बता दें कि वजुभाई कर्नाटक के राज्यपाल बनने तक विधायक और विधानसभा स्पीकर थे. उन्होंने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया।

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