Kanpur सिर्फ Pan Masala Capital ही नहीं, इन बातों के लिए भी रहा है चर्चित

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उत्तर प्रदेश का Kanpur एक जमाने में ‘पूरब का मैंनचेस्टर’ कहा जाता था। विशाल औद्योगिक इकाईयों का गवाह रहा कानपुर आजकल एक अनोखे और दिलचस्प मामले को लेकर चर्चा में बना हुआ है। दरअसल कानपुर के ग्रीनपार्क स्टेडियम में 25 नवंबर को हो रहे इंडिया और न्यूजीलैंड के टेस्ट मैच के दौरान दर्शक दीर्घा में बैठे एक मैच प्रेमी पर कैमरे की नजर ठहर गई।

वह दर्शक बड़े ही शाही अंदाज में गुटखा खाते हुए मैच का आनंद ले रहा था। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही उसकी तस्वीर के साथ यूजर्स कानपुर को लेकर तरह-तरह की दिलचस्प टिप्पणी कर रहे हैं।

लेकिन सोशल मीडिया की उन तमाम टिप्पणियों में कानपुर की जो छवि बन रही है, वह चिंताजनक है। तरह-तरह के गुटखे के ब्रांड के साथ कानपुर का नाम जोड़ा जा रहा है क्योंकि आज की तारीख में कानपुर से कई गुटखों का उत्पादन हो रहा है।

लेकिन हम यह भूल रहे हैं कि आज से करीब 3 दशक पहले तक उसी कानपुर की छवि एक विकसित औद्योगिक शहर के तौर पर होती थी, जो आज के विकासवाद में कहीं गुम हो गया है।

कानपुर में कई टेक्सटाइल मिलें हुआ करती थीं

कानपुर का सूती वस्त्र उद्योग, चमड़े कोराबार, ऊनी वस्त्र उद्योग और जूट की मिलें इसकी शोहरत में चार-चांद लगाते थे। कानपुर अपने कपड़ा और चमड़ा उद्योग के कारण पूरे विश्व में अपनी अलग पहचना रखता था। एक जमाने में पश्चिम बंगाल के बाद सबसे ज्यादा कपड़ों की बुनाई कानपुर में ही हुआ करती थी।

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इसके लिए कानपुर में कई टेक्सटाइल मिलें हुआ करती थीं, जहां से कपड़ों की बुनाई, रंगाई और सीलाई बड़े पैमाने पर की जाती थ। वहीं चमड़े से बने जूते, बेल्ट, जैकेट और अन्य सौन्दर्य सामानों का निर्माण कानपुर में किया जाता था। एक समय था कि जब दिल्ली-कलकत्ता रेलवे मार्ग से ट्रेन गुजरती थी और चमड़े की सड़ांध बदबू जब यात्रियों के नथुनों में प्रवेश करता था तो सब जान जाते थे कि ट्रेन कानपुर पहुंच चुकी है।

अंग्रेजों के जमाने से यहां उद्योगों की स्थापना होने लगी थी

अंग्रेजों के जमाने में सड़क और रेल परिवहन आज के समय जितना उन्नत नहीं था इसलिए अक्सर नौका परिवहन के लिहाज से उन शहरों को चुना जाता था, जिसके आसपास बड़ी नदी बहती हो। कानपुर भी गंगा के तट पर स्थित था इसलिए अंग्रेजों को लगा कि यहां व्यापार और उद्योग की संभावना अच्छी हो सकती है। इसलिए अंग्रेजों के काल से यहां उद्योगों की स्थापना होने लगी। बड़ी-बडी मिलें लगने लगीं। कानपुर में अंग्रेजों ने सबसे पहले नील का कारोबार शुरू किया। साल 1832 में कानपुर से इलाहाबाद शहर को ग्रैंड ट्रंक रोड से जोड़ा गया।

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धीरे-धीरे बीतते वक्त के साथ कानपुर एक औद्योगिक नगरी बन गया। कानपुर में लाल इमली, म्योर मिल, एल्गिन मिल, कानपुर कॉटन मिल और अथर्टन मिल के बने कपड़ों ने विश्व स्तर पर कानपुर की छवि को निखारने का काम किया। यही कारण है कि इतिहासकारों ने अपनी लेखनी में कानपुर को ‘मैनचेस्टर ऑफ़ द ईस्ट’ के रूप में दर्ज किया।

कानपुर में बने चमड़े के उत्पादों की सप्लाई विदेशों तक होती थी

कपड़ा उद्योग के अलावा कानपुर को जो दूसरी पहचना मिलती थी, वह उसके चमड़े उद्योग से जुड़ी हुई थी। कानपुर के चमड़े के जूते, बेल्ट, पर्स, चप्पल, वस्त्र, सैडल जैसे उत्पादों का कोई जवाब नहीं था। मजबूती के साथ-साथ सुंदर डिजाइन में बने चमड़े के विभिन्न उत्पादों को कानपुर न केवल देश बल्कि विदेशों में भी सप्लाई करता था। आज दम तोड़ चुके कानपुर के चमड़ा व्यापार की बात करें तो यह अब भी भारत के कुल चमड़े और चमड़े के सामान के निर्यात में लगभग 20 फीसदी का योगदान दे रहा है।

गुटखा उद्योग

कानपुर में गुटखा उद्योग की शुरूआत सबसे पहले मनसुख भाई कोठारी ने की। उन्होंने अगस्त 1973 को कानपुर में अपने पान मसाला उत्पाद ‘पान पराग’ की नींव रखी। देखते ही देखते कानपुर का ‘पान पराग’ कपड़े और चमड़े पर भारी पड़ने लगा। देश-विदेश में जबरदस्त मांग के कारण मनसुख भाई ने पान-मसाला का एम्पायर खड़ा कर लिया।

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उसके बाद तो जैसे कानपुर में गुटखा फैक्ट्रियों की लाइन लग गई। सैकड़ों तरह के नाम और स्वाद के साथ कानपुर का बना गुटखा भारत के कोने-कोने में पहुंचने लगा। तभी से कानपुर का मेकओवर हुआ और इसे लोग इसके पुरानी औद्योगिक विरासत के कारण नहीं बल्कि गुटखा उद्योग के कारण ज्यादा पहचानने लगे।

प्रदूषण और यूनियनबाजी के कारण कानपुर के उद्योगों ने दम तोड़ दिया

कपड़ा और चमड़ा उद्योग के दम तोड़ने के पीछे बहुत से कारण रहे। मसलन सबसे बड़ा कारण था कानपुर गंगा में बढ़ता औद्योगिक कचरे का प्रदुषण। जिसे लेकर कोर्ट ने सख्ती दिखाई और उसके कारण चमड़ा उद्योग पूरी तरह से बैठ गया।

वहीं कॉटन मिलों में भी कैमिकल प्रोसेसिंग से कपड़ों की रंगाई और अन्य काम होते थे। जिसका पूरा कचरा गंगा में समाहित हो रहा था। इसलिए कपड़ा उद्योग पर भी कोर्ट का शिकंजा कसा और धीरे-धीरे वो भी दम तोड़ने लगा। वैसे मिलें बंद होने के पीछे कामगारों की यूनियनबाजी की काफी हद तक जिम्मेदार रही।

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आज की तारीख में कानपुर में काफी उद्योग-धंधे चल रहे हैं। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय की कई फैक्ट्रियां आज बी कानपुर में काम कर रही हैं। मसलन हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), डीएमएसआरडीई, स्माल आर्म्स फैक्ट्री (एसएएफ), फील्ड गन फैक्ट्री और पैराशूट फैक्ट्री जैसी रक्षा प्रतिष्ठान सेना के लिए आज भी उत्पाद बना रहे हैं।

याद रखें कानपुर की पहचान मजह गुटखे से नहीं है और भी बहुत कुछ छुपा है कानपुर के इतिहास में। जरा खंगाल कर देखिये तो सही।

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