भारत ने कल पहली बार मलक्का जलडमरू मध्य के पूर्व में स्थित किसी देश के साथ सैन्य साजो-सामान संबंधी समझौता किया है। कल भारत व सिंगापुर ने एक समझौते पर दस्तखत किए, जिसके तहत समुद्री सुरक्षा को लेकर दोनों देशों ने एक दूसरे की मदद करने का भरोसा दिया। इस समझौते के तहत सिंगापुर भारतीय नौसेना के युद्धपोतों को अपने चांगी नौसैनिक अड्डे पर रुकने की अनुमति देगा। साथ ही जरूरत पड़ने पर भारतीय युद्धपोतों को आवश्यक रक्षा सामग्री भी प्रदान करेगा।

बता दें कि इस समझौते से चीन को बड़ा झटका लग सकता है। दरअसल दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते दखल के बीच यह समझौता चीन के लिए चिंता का सबब बन सकता है। भारत के दौरे पर आए सिंगापुर के रक्षा मंत्री ऐंग इंग हेंस ने कल रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बातचीत की। इसके बाद दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

समझौते के बाद हेंस ने कहा, हम भारतीय नौसैनिक पोतों की चांगी नौसैनिक अड्डे की यात्रा का समर्थन करते हैं। द्विपक्षीय नौसेना समझौते में सैन्य साजो सामान की आपूर्ति का भी प्रावधान है। समझौते के तहत दोनों देश मलक्का जलडमरू मध्य और अंडमान सागर में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाएंगे। इस दौरान दोनों नेताओं ने अपने साझा बयान में कहा कि द्विपक्षीय समझौते से समुद्री सुरक्षा, संयुक्त अभ्यास में सहयोग के साथ-साथ दोनों देशों के नौसैनिक एक-दूसरे के यहां अस्थायी रूप से रुक सकेंगे और सैन्य साजो-सामान साझा कर सकेंगे।

इसके अलावा दोनों देशों ने सुरक्षा चुनौतियों विशेष रूप से वैश्विक आतंकवाद से मिलकर निपटने पर जोर दिया। रसायनिक, जैविक हमलों और विकिरणों के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए जानकारी साझा करने पर भी सहमति जताई। वहीं रक्षामंत्री हेंग की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर में अगले वर्ष होने वाले शांगरी-ला संवाद में मुख्य वक्ता के तौर पर भाग लेने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। इसमें वह (मोदी) स्थिर प्रशांत हिन्द क्षेत्र के बारे में भारत का दृष्टिकोण रखेंगे।

गौरतलब है कि भारतीय नौसेना के युद्धपोत गत जून से ही मलक्का जलडमरू मध्य में गश्त लगा रहे हैं और यह क्षेत्र इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत का 35 प्रतिशत व्यापार दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र के रास्ते ही होता है।

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