उच्चतम न्यायालय ने देश के सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए ऑनलाइन लिंक बनाने में नाकाम रहने पर कड़ी कार्रवाई करते हुए केंद्र शासित दिल्ली और पांच राज्यों पर जुर्माना लगाया है। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली पर दो लाख जबकि अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और ओडिशा पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।  न्यायाधीश मदन बी लोकुर, न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायाधीश दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने मंगलवार को मध्याह्न भोजन योजनाओं के मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकारों के शीर्ष न्यायालय के इस मसले पर दिए गए निर्देशों का पालन नहीं करने पर कड़ा रुख अख्तियार किया ।

शीर्ष न्यायालय ने दिल्ली और पांच राज्यों पर जुर्माना लगाते हुए निर्देश दिया कि वह जुर्माने की राशि को चार सप्ताह के भीतर उच्चतम न्यायालय कानून सेवा प्राधिकरण के खाते में जमा करायें। याचिकाकर्ता स्वयंसेवी संगठन ‘अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार निगरानी परिषद’ के अधिवक्ता ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि उक्त राज्यों ने न्यायालय के निर्देश के बावजूद अभी तक अपनी वेबसाइट्स का लिंक नहीं बनाया है।  इसके बाद शीर्ष न्यायालय ने जुर्माना लगाया। याचिका में कहा गया था कि देश भर में 12 लाख से अधिक सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों में बच्चों को पका हुआ खाना रोजाना मुफ्त परोसा जाता है।

संगठन ने इस भोजन की निगरानी के लिए उचित बुनियादी ढांचा नहीं होने से विषाक्त भोजन के जोखिम और स्वास्थ्य संबंधी चिताएं व्यक्त की थीं। परिषद ने मध्याह्न भोजन से जुड़ी यह याचिका 2013 में दायर की थी। इस योजना के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को दोपहर का भोजन मुफ्त उपलब्ध कराया जाता है। शीर्ष न्यायालय ने पिछले साल 23 मार्च को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से सरकारी वेबसाइट पर लिंक बनाकर मध्याह्न भोजन योजनाओं की जानकारी अपलोड करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने यह काम तीन माह के भीतर पूरा करने के निर्देश दिये थे।

इस वर्ष अगस्त में झारखंड, तमिलनाडु और उत्तराखंड पर भी आॅनलाइन लिंक नहीं बनाने पर शीर्ष न्यायालय ने पचास-पचास हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। बिहार के एक गांव में 2013 में विषाक्त मध्याह्न भोजन करने से 23 बच्चों की मौत हो गयी थी।

-साभार, ईएनसी टाईम्स

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