नक्सली इलाकों में रह रहे बच्चों और आम लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए आवश्यक है कि उनकी शिक्षा व्यवस्था पर जोर दिया जाए। साथ ही उन शिक्षकों के बारे में भी सोचना चाहिए जो नक्सली इलाकों में पढ़ाकर संघर्षरत जीवन व्यतीत करते हैं। लेकिन अब नक्सली इलाकों के लोगों को अच्छी शिक्षा भी मिलेगी और शिक्षकों को भी अपने पूरे कार्यकाल में ऐसे इलाकों में रहना नहीं पड़ेगा। जी हां, झारखंड सरकार ने शिक्षक स्थानांतरण नीति का ड्राफ्ट जारी कर दिया है। इसमें कहा गया है कि किसी भी शिक्षक की सेवा अगर 20 वर्ष या उससे ज्यादा बची है तो उसे 5 साल नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पढ़ाना ही होगा। साथ ही उन शिक्षकों को राहत दी गई है जिन्होंने अपने सेवाकाल में 5 साल या उससे अधिक का समय नक्सल प्रभावी क्षेत्र में बिताया है।

इसमें शिक्षकों का स्थानांतरण साल में सिर्फ एक बार निर्धारित महीने में ही करने का प्रावधान किया गया है। यही नहीं नीति के अनुसार, पूरे सेवाकाल में दिव्यांग तथा महिलाओं को उनकी इच्छानुसार विद्यालय में स्थानांतरण दिया जा सकेगा, जबकि सामान्य पुरुष शिक्षकों को पूरे सेवा काल में सिर्फ एक बार स्थानांतरण के विकल्प का उपयोग करने की छूट मिलेगी।

बता दें कि कुछ चिन्हित स्कूल हैं जिनपर इस आदेश का प्रभाव नहीं है जैसे नेतरहाट, कस्तूरबा गांधी विद्यालय, मॉडल विद्यालय और झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय। शिक्षकों की आपत्ति या सुझाव लेने के लिए  साक्षरता विभाग ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक मनोज कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की है। इस कमेटी में उप निदेशक अरविंद झा, दक्षिणी छोटानागपुर अरविंद झा, क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक  तथा रांची डीइओ शामिल किए गए हैं। बता दें कि प्राथमिक विद्यालय और माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों का स्थानांतरण अलग-अलग कमेटियां करेंगी।

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