Demonetization को चुनौती देने वाली याचिकाओं को SC ने किया खारिज, जानिए क्या था आखिर ये पूरा मामला…

जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4:1 के बहुमत वाला फैसला सुनाते हुए कहा कि Demonetization से पहले सरकार और RBI के बीच इसके लेकर सलाह-मशविरा हुआ था।

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Demonetization को चुनौती देने वाली याचिकाओं को SC ने किया खारिज, जानिए क्या था आखिर ये पूरा मामला... - APN News
Demonetization and Supreme Court decision - For representational purpose only

8 नवंबर 2016 वो तारीख है जिसको शायद ही कोई भारतीय भुला हो, जी हां, हम बात कर रहे नोटबंदी (Demonetization) वाले दिन की। 8 नवंबर 2016 को 1000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संवैधानिक पीठ ने चार एक का फैसला सुनाते हुए बहुमत के आधार पर केंद्र सरकार को आज यानी 2 जनवरी 2023 को एक तरह से क्लीन चीट दे दी है।

Supreme Court में जजों ने क्या कहा?

न्यायाधीश अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4:1 के बहुमत वाला फैसला सुनाते हुए कहा कि नोटबंदी से पहले केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच इसके लेकर सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के कदम उठाने को लेकर दोनों पक्षों में बातचीत हुई थी इसलिए हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत (Doctrine Of Proportionality) से प्रभावित नहीं हुई थी।

Supreme Court Demonetization hearing 2
Supreme Court – Demonetisation hearing

वहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना ने केंद्र सरकार के अधिकार के मुद्दे पर अपना अलग मत देते हुए कहा कि संसद को नोटबंदी के मामले में कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी। इसके अलावा यह प्रक्रिया गजट अधिसूचना के जरिए नहीं होनी चाहिए थी।

न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ में जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन भी थे।

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क्या हुआ था 8 नवंबर 2016 को?

8 नवंबर 2016 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शाम आठ बजे अपने राष्ट्र को नाम दिए गए संबोधन में कहा था कि “एक तरफ आतंकवाद और जाली नोटों का जाल देश को तबाह कर रहा है। दूसरी ओर भ्रष्टाचार और काले धन की चुनौती देश के सामने बनी हुई है। हमने कार्य संभालने के तुरंत बाद भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत करते हुए अनेक प्रभावी कदम उठायें हैं। पिछले दशकों में हम यह अनुभव कर रहे है की देश में भ्रष्टाचार और कला धन जैसी बीमारियों ने अपनी जड़े जमा लीं हैं और देश से गरीबी हटाने में ये भ्रष्टाचार, ये कला धन, ये गोरख धंधे सबसे बड़ी बाधा है। आज देश की मुद्राव्यवस्था का हाल यह है की देश में कुल सिक्कों और नोटों की मूल्य में 500 और 1,000 रुपये वाले नोटों का हिस्सा लगभग 80 से 90 प्रतिशत तक पहुंच गया है। देश को भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए आज मध्य रात्रि यानि 8 नवम्बर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानि ये मुद्राएं कानूनन अमान्य होंगी।… भ्रष्टाचार, काले धन और जाली नोट के कारोबार में लिप्त देश विरोधी और समाज विरोधी तत्वों के पास मौजूद 500 एवं 1,000 रुपये के पुराने नोट अब केवल कागज़ के एक टुकड़े के समान रह जायेंगे।”

इस घोषणा के बाद से पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया और लोगों की बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लग गई थी। अपने पूराने नोटों को बदलवाने के लिए लाईनों मे खड़े कई लोगों की मौत भी हो गई थी।

रिकार्ड पेश करने को लेकर दिया था आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और भारत के केंद्रीय बैंक RBI को सात दिसंबर को आदेश देते हुए सरकार से 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से जुड़े हुआ रिकार्ड पेश करने को कहा था।

RBI
RBI

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सरकार का क्या था रुख?

1000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को चुनौती देते हुए पूर्व वित्त मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा (Legal Tender) से जुड़े हुए किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल देश के केंद्रीय बैंक RBI के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है। वहीं सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले पर फैसला नहीं कर सकती है, जो बीते वक्त में किया गया था और जिसमें लौट कर कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।

क्या है RBI एक्ट की वो धारा जिसके तहत दर्ज हुआ था मामला?

सुप्रीम कोर्ट में दायक की गई याचिकाओं में कहा गया था कि आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत, ‘केंद्र सरकार RBI के केंद्रीय बोर्ड की अनुशंसा पर भारतीय राजपत्र (The Gazette Of India) में एक अधिसूचना जारी करके बैंक नोटों की किसी भी श्रंखला (Series) को आम लेन-देने के लिए गैरकानूनी ठहरा सकती है। लेकिन, अधिसूचना में बताई गई संस्था में ऐसे नोट तय की गई अवधि तक मान्य रहेंगे (आधिकारिक भाषा में लीगल टेंडर).’

याचिकाकर्ताओं का क्या कहना था?

कई याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा था कि आरबीआई एक्ट की इस धारा के तहत नोटबंदी की अनुशंसा आरबीआई द्वारा की जानी चाहिए थी, लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा आरबीआई को सुझाव दिया गया था जिसके बाद उसने इस फैसले की अनुशंसा की। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इससे पहले 1946 और 1978 में नोटबंदी करने के लिए तत्कालीन सरकारों को संसद में कानून पास करवाना पड़ा था।

चिदंबरम ने इस मामले में केंद्र सरकार पर नोटबंदी से जुड़े हुए फैसले से संबंधित दस्तावेजों को कोर्ट के सामने नहीं रखने का आरोप भी लगाते हुए ये भी सवाल उठाया था कि क्या सेंट्रल बोर्ड (RBI के) की बैठकों में नियमों के तहत न्यूनतम सदस्यों की संख्या वाली शर्त पूरी की गयी थी, या नहीं?

इन आरोपों पर आरबीआई की ओर से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा था कि ‘ये धारा (आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) ) प्रक्रिया के शुरू होने को लेकर बात नहीं करती है। ये बस इतना कहती है कि प्रक्रिया इस धारा में रेखांकित किए गए पहलुओं के बिना पूरी नहीं होगी।’ इसके साथ ही जयदीप ने कहा कि ‘हमने (RBI ने) इसकी अनुशंसा की थी।’

People in ATM queue after demonetisation
People in ATM queue after demonetisation

पिछले साल हो गए 6 साल पूरे

पिछले साल 8 नवंबर को देश में नोटबंदी (Demonetization) के 6 साल पूरे हो थे। नवंबर 2016 में भारतीय बाजार से 500 और 1,000 रुपये के नोट वापस लेने के बाद, जनता के पास मुद्रा, जो 4 नवंबर, 2016 को 17.97 लाख करोड़ रुपये थी, नोटबंदी के तुरंत बाद जनवरी 2017 में घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई थी।

क्या Demonetization का पूरा हो पाया मकसद?

केंद्र सरकार के अनुसार काले धन को समाप्त करना, नकली नोट या नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना और कम से कम समय में अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाना आदि नोटबंदी (Demonetization) के प्राथमिक लक्ष्यों में शामिल थे। हालांकि कई लोगों ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर नोटबंदी के इस उद्देश्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया था।

वर्ष 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया था कि नोटबंदी के दौरान प्रचलन से बाहर घोषित किये गए कुल नोटों का तकरीबन 99.3 फीसदी यानी लगभग पूरा हिस्सा बैंकों में वापस जमा हो गया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि अमान्य घोषित किये गए 15.41 लाख करोड़ रुपए में से 15.31 लाख करोड़ रुपए के नोट वापिस रिजर्व बैंक के पास वापिस जमा हुए थे।

फरवरी 2019 में संसद में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बताया था कि नोटबंदी समेत सभी प्रकार के काले धन को समाप्त करने के लिये उठाए गए विभिन्न उपायों के चलते 1.3 लाख करोड़ रुपए का काला धन बरामद किया गया था, जबकि सरकार ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए तकरीबन 3-4 लाख करोड़ रुपए बरामद करने की बात कही थी।

रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुल 2,30,971 नकली नोट पकड़े गए थे। जाली नोटों में सबसे ज्यादा संख्या 500 और 2000 रुपये के नोटों की थी। वित्त वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट कहती है, 500 रुपये के 92,237 जाली नोट बरामद किए गए। पिछले साल से इसकी तुलना करें तो यह आंकड़ा लगभग दोगुना है।

आंकड़ों के आधार पर कहा जाया तो हम कह सकते हैं कि तो नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था से काले की समस्या को समाप्त करने में कुछ हद तक विफल रही है।

क्या होता है काला धन? Black Money

Demonetization
People in queue after demonetization

काला धन असल में वह आय है जिसे कर अधिकारियों से छुपाने का प्रयास किया जाता है यानी इस प्रकार की आय का देश की बैंकिंग प्रणाली में कोई हिसाब नहीं होता है और न ही इस पर किसी प्रकार का कर (Tax) दिया जाता है।

कैशलेस अर्थव्यवस्था का सपना? (Cashless Economy)

आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में अर्थव्यवस्था में मौजूद कुल नोटों की संख्या तकरीबन 16.4 लाख करोड़ रुपए थी, जो वित्तीय वर्ष 2021-22 में बढ़कर लगभग दोगुना हो गई। RBI के आंकड़ो के अनुसार इस समय देश में 30.35 (30,35,688.82) लाख करोड़ रुपए के मूल्य के नोट अर्थव्यवस्था में चल रहे है। इस प्रकार नोटबंदी लागू किये जाने के बाद भी नोटों की संख्या और मात्रा में काफी वृद्धि देखने को मिली है, हालांकि नोटों में वृद्धी की साथ-साथ डिजिटल लेन-देन में भी अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

इसी वर्ष अक्टूबर 2022 में जारी किए गए रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार वित्तीय सितंबर 2022 में भारत में मोबाईल ऐप्स के माध्यम से 18,82,968 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था। सितंबर 2022 में एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) के जरिये हुए भुगतान ने 11,16,438 करोड़ लेन-देन के साथ एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

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