आज यानी 8 नवंबर 2022 को देश में नोटबंदी (Demonetization) हुए 6 साल पूरे हो गए हैं. 8 नवंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाम 8 बजे घोषणा कि की आज रात 12 बजे से 500 और 1000 को नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे. इस घोषणा के बाद पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया और लोगों की बैंकों के बाहर लंबी-लंबी लाईनें लग गई थी. अपने पूराने नोटों को बदलवाने के लिए लाईनों मे लगे कई लोगों की मौत भी हो गई थी.
ऐसे तो भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से पिछले सात दशकों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. आजादी के समय देश की GDP (सकल घरेलु उत्पाद) केवल 2.7 लाख करोड़ रुपए थी, जो अब बढ़कर 350 लाख करोड़ रुपए के आसपास है. भारत को पहले “तीसरी दुनिया का देश” कहा जाता है जो अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
नवंबर 2016 में भारतीय बाजार से 500 और 1,000 रुपये के नोट वापस लेने के बाद, जनता के पास मुद्रा, जो 4 नवंबर, 2016 को 17.97 लाख करोड़ रुपये थी, नोटबंदी के तुरंत बाद जनवरी 2017 में घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई थी.
क्या Demonetization का पूरा हो पाया मकसद?
केंद्र सरकार के अनुसार काले धन को समाप्त करना, नकली नोट या नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना और कम से कम समय में अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाना आदि नोटबंदी (Demonetization) के प्राथमिक लक्ष्यों में शामिल थे. हालांकि कई लोगों ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर नोटबंदी के इस उद्देश्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया था.
वर्ष 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया था कि नोटबंदी के दौरान अवैद्य घोषित किये गए कुल नोटों का तकरीबन 99.3 फीसदी यानी लगभग पूरा हिस्सा बैंकों के पास वापस आ गया था. जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अमान्य घोषित किये गए 15.41 लाख करोड़ रुपए में से 15.31 लाख करोड़ रुपए के नोट वापिस रिजर्व बैंक के पास वापिस आ गए थे.
संसद में फरवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बताया था कि नोटबंदी समेत सभी प्रकार के काले धन को समाप्त करने के लिये उठाए गए विभिन्न उपायों के कारण 1.3 लाख करोड़ रुपए का काला धन बरामद किया गया था, जबकि सरकार ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए तकरीबन 3-4 लाख करोड़ रुपए बरामद करने की बात कही थी.
रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुल 2,30,971 नकली नोट पकड़े गए थे. जाली नोटों में सबसे ज्यादा संख्या 500 और 2000 रुपये के नोटों की थी. वित्त वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट कहती है, 500 रुपये के 92,237 जाली नोट बरामद किए गए. पिछले साल से इसकी तुलना करें तो यह आंकड़ा लगभग दोगुना है.
अगर हम आंकड़ों के आधार पर कहें तो नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था से काले की समस्या को समाप्त करने में कुछ हद तक विफल रही है.
क्या होता है काला धन?
काला धन असल में वह आय है जिसे कर अधिकारियों से छुपाने का प्रयास किया जाता है यानी इस प्रकार की नकदी का देश की बैंकिंग प्रणाली में कोई हिसाब नहीं होता है और न ही इस पर किसी प्रकार का कर (Tax) दिया जाता है.
कैशलेस अर्थव्यवस्था का निर्माण?
आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में अर्थव्यवस्था में प्रचलित कुल नोटों की संख्या तकरीबन 16.4 लाख करोड़ रुपए थी, जो कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में बढ़कर लगभग दोगुना हो गई है. जारी किए गए आंकड़ो के अनुसार इस समय देश में 30.88 लाख करोड़ रुपए के मूल्य के नोट अर्थव्यवस्था में प्रचलित है.
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी लागू किये जाने के बाद भी अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों की संख्या और मात्रा में काफी वृद्धि देखने को मिली है, हालांकि नोटों में वृद्धी की साथ-साथ डिजिटल लेन-देन में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
कोरोना वायरस महामारी ने भी लोगों के बीच नकदी के प्रचलन को और बढ़ावा दिया है. जब मार्च 2022 में केंद्र सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी तो आम लोगों ने किसी भी आपातकालीन परिस्थिति से निपटने के लिये नकदी को एकत्र करना शुरू कर दिया था, जिसके कारण भी अर्थव्यवस्था में नकदी के प्रचलन में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है.
डिजिटल लेनदेन
इसी वर्ष अक्टूबर 2022 में प्रकाशित रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि वित्तीय सितंबर 2022 में भारत में मोबाईल ऐप्स के माध्यम से 18,82,968 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था. सितंबर 2022 में एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) आधारित भुगतान ने 11,16,438 करोड़ लेन-देन के साथ एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है.
दो दशकों में पहली बार कैश बीती दिवाली पर घटा
एसबीआई से जुड़े हुए आर्थिक मामलों के जानकारों ने कहा है कि चलन में मौजूद मुद्रा में दीपावली के हफ्ते के दौरान 7,600 करोड़ रुपये की कमी देखी गई है. वर्ष 2009 के दीपावली सीजन को छोड़ दें तो यह पिछले दो दशकों में नकद के इस्तेमाल में आई सबसे बड़ी कमी है. माना जा रहा है वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की अशंका के बीच नकद के इस्तेमाल में यह कमी दर्ज की गई है.