कवि और हिंदी के पहले गज़लकार स्व. दुष्यंत कुमार की आज यानि 1 सितंबर को सालगिरह है। हिंदुस्तान के आम आदमी की आवाज़ बने रहे इस शख़्स की सालगिरह पर होना तो ये था कि जहां उन्होंने उम्र का बड़ा हिस्सा गुज़ारा था, वहां उन्हे ये सूबा जश्न के साथ याद करता। लेकिन इस सालगिरह पर दुष्यंत कुमार की आख़िरी निशानी भी मिटा दी गयी। वो है उनका घर। बता दें कि भोपाल के जिस सरकारी मकान में दुष्यंक कुमार ने अंतिम सांसें लीं, उसी सरकारी मकान को ढहा दिया गया। यही नहीं जिस दुष्यंत कुमार संग्रहालय के रहते, इस अज़ीम शायर का नाम नयी पीढी तक ज़िंदा रह सकता, उस संग्रहालय को तीन  महीने के भीतर तोड़ने की तैयारी है।

नॉर्थ टीटी नगर की उस जगह पर अगर मलबे की जगह दीवारें और खिड़कीं अब भी खड़ी होतीं तो उसका पता होता 69/8। भोपाल के उस सरकारी मकान की पहचान दुष्यंत कुमार के घर के तौर पर होती रही। ये वो सरकारी मकान था, जहां मध्यप्रदेश के राजभाषा विभाग में नौकरी करते हुए दुष्यंत कुमार ने अपनी छोटी-सी उम्र का बड़ा हिस्सा गुज़ारा था।

दुष्यंतजी के इस घर में देर रात तक महफ़िल जमती थीं। दीन दुनिया से फारिग होने के बाद शायर अपनी दुनिया में लौटता था। उस घर के झरोखे, खिड़कियों पर बैठकर ही साए में धूप का अहसास किया था। लेकिन दुष्यंत कुमार की तमाम यादें, मलबे में दफन कर दी गयीं। ये और बात है कि उनके शेर अब भी नेताओं के भाषणों का ओज बने हुए हैं। शहर को स्मार्ट बनाने के लिए दुष्यंत कुमार का घर तो ज़मींदोज़ कर ही दिया गया, उनके नाम पर, साहित्यकारों की स्मृतियों को सहेजने के लिए बनाया गया संग्रहालय भी नोटिस पीरियड पर अपने अंतिम दिन गिन रहा है।

आपको बता दें कि साउथ टीटी नगर के एक सरकारी घर में बने संग्रहालय में दुष्यंत कुमार की वो पूरी ग़जल मौजूद हैं जिनके शेर नेताओं की पीढ़ियां सुना कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ती रही हैं। संग्रहालय में वो जैकेट भी सहेज कर रखी गयी है जो दुष्यंत कुमार ने अपने आख़िरी मुशायरे में पहनी थी। वो कलाई घड़ी भी इस संग्रहालय में रखी गयी है, जिसे दुष्यंत ने जब वो लिखने बैठते थे तो उसमें कभी समय देखा ही नहीं। लेकिन इन तमाम यादों और बातों की निशानियां समेटे इस संग्रहालय को समेटने का नोटिस भी आ चुका है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here