चुनाव आयोग ने लाभ के पद के मामले में आम आदमी पार्टी के विधायकों पर दायर मुकदमे को खत्म करने की याचिका को खारिज कर दिया है। इस मामले में चुनाव आयोग ने एक महीने पहले ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था। इससे पहले आप विधायकों ने याचिका दी थी कि जब दिल्ली हाईकोर्ट में संसदीय सचिव की नियुक्ति ही रद्द हो गई है, तो ऐसे में इस मुकदमे का कोई मतलब ही नहीं बनता।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति के रद्द करने का फैसला एक अलग और संवैधानिक मामला है पर अगर कोई इस पद पर बैठ कर उसका फायदा उठाया है तो उसका मुकदमा तो चलता ही रहेगा। अब आप विधायकों को यह साबित करने की चुनौती होगी कि वे संसदीय सचिव के तौर पर लाभ के पद पर नहीं थे।
चुनाव आयोग के मुताबिक आप विधायकों के पास संसदीय सचिव का पद 13 मार्च 2015 से 8 सितंबर 2016 तक था। इसलिए राजौरी गार्डन के विधायक जरनैल सिंह को छोड़कर 20 आप विधायकों पर मुकदमा चलता रहेगा। जरनैल सिंह को यह छूट इसलिए मिली है क्योंकि वह जनवरी 2017 में विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं। अब चुनाव आयोग में अंतिम सुनवाई शुरू होगी, आरोप साबित होने पर आप विधयकों की सदस्यता खतरे में पड़ सकती है।
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार द्वारा मार्च, 2015 में 21 आप विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने के बाद प्रशांत पटेल नामक वकील ने राष्ट्रपति के पास इसकी शिकायत की थी और मांग किया था कि इन सभी 21 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाये। राष्ट्रपति ने यह मामला चुनाव आयोग के पास भेज दिया था और चुनाव आयोग ने मार्च, 2016 में 21 आप विधायकों को नोटिस भेज कर इस मामले पर सुनवाई शुरू की थी। हालांकि केजरीवाल सरकार ने पिछली तारीख से कानून बना कर संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर निकालने की कोशिश की थी, लेकिन राष्ट्रपति ने उस बिल को ही लौटा दिया था। 8 सितंबर 2016 को दिल्ली हाइकोर्ट ने भी 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कर दी थी, लेकिन विधायकों की विधायकी पर खतरा अब भी बरकरार है।