कुलभूषण जाधव के मामले को हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने का कांग्रेस विरोध कर रही है। उसका कहना है कि आज आप जाधव का मामला हेग ले गए हैं, कल पाकिस्तान कश्मीर का मामला हेग ले जाएगा। तब आप क्या करेंगे? कांग्रेस का यह तर्क बिल्कुल बोदा है। जाधव और कश्मीर के मामलों में जमीन-आसमान का फर्क है। जाधव के मामले में मूल प्रश्न यह है कि पाकिस्तान, ‘जिनीवा अभिसमय’ का पालन करे, जिसके अनुसार आप जिस देश के नागरिक पर मुकदमा चलाएं, उसे अपने दूतावास की सुविधाएं लेने दें। इस अभिसमय पर भारत और पाकिस्तान, दोनों ने दस्तखत किए हैं। कश्मीर-जैसा सवाल यदि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जा सकता होता तो क्या पाकिस्तान अभी तक चुप बैठता? ऐसे मामले तभी अंतरराष्ट्रीय न्यायिक संस्थाओं में जाते हैं जबकि दोनों पक्षों की सहमति हो। जहां तक जाधव का सवाल है, हेग की अदालत ने उससे अनुरोध किया है कि जब तक वह इस मामले की सुनवाई न कर ले, जाधव को सजा—ए—मौत न दी जाए।

इस मामले के अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाने का सबसे बड़ा फायदा पाकिस्तान को मिलेगा, क्योंकि अब जाधव को नहीं लटकाने का बहाना उसे मिल गया है। यदि पाकिस्तान की फौज जाधव को फांसी दे देगी तो उसे काफी अंतरराष्ट्रीय बदनामी सहनी पड़ेगी। हेग की अदालत की सलाह का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ अपने सेनापति को भी मना सकते हैं। यों मोदी और सुषमा, नवाज़ और सरताज अजीज़ से सीधे बात कर सकते थे लेकिन भारत सरकार की यह उत्तम कूटनीति है कि उसने अप्रत्यक्षतः नवाज़ के हाथ मजबूत कर दिए हैं। यों भी नवाज़ और सेनापति बाजवा के बीच ‘डान लीक’ के मामले में अब शांति हो गई है। नवाज़ शरीफ और मोदी दोनों ही भारत-पाक संबंधों को सुधारना चाहते हैं। यदि हेग की अदालत का फैसला जाधव की रिहाई के लिए हो जाए और पाकिस्तान उसे मान ले तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। जाधव के मामले में अब ईरान भी खुलकर भारत का साथ दे रहा है। उधर अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की रोज़ मुठभेड़ें हो रही हैं। ऐसे में पाक फौज थोड़े संयम से काम ले तो पूरे दक्षिण एशिया में तनाव घटेगा।

डा. वेद प्रताप वैदिक

Courtesyhttp://www.enctimes.com

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