CJI ने कहा, बयान को तोड़-मरोड़ के किया गया पेश, आरोपी को शादी के लिए नहीं कहा, महिलाओं का करते हैं सम्मान

बोबड़े ने कहा- इस कोर्ट ने हमेशा महिलाओं को बड़ा सम्मान दिया है। हमने कभी किसी आरोपी से पीड़िता से शादी करने को नहीं कहा है। हमने कहा था, 'क्या तुम उससे शादी करने जा रहे हो? इस मामले में हमने जो कहा था, उसकी पूरी तरह से गलत रिपोर्टिंग की गई थी।'

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सुप्रीम कोर्ट

रेप के आरोपी को पीड़िता से शादी करने के लिए कहने की बात पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा है कि मामले की गलत रिपोर्टिंग की गई थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा से महिलाओं का सम्मान करता रहा है।

दरअसल कुछ दिन पहले एक खबर सामने आई थी कि, चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने पीड़िता को इंसाफ दिलाने के लिए आरोपी को रेप पीड़िता से शादी करने के लिए कहा है। इस खबर के सामने आते ही बहस छिड़ गई थी। लोग आने वाले समय के लिए इस फैसले को खतरनाक बता रहे थे। मामले को बढ़ता देख बोबड़ ने इसपर सफाई पेश की है।

बोबड़े ने कहा- इस कोर्ट ने हमेशा महिलाओं को बड़ा सम्मान दिया है। हमने कभी किसी आरोपी से पीड़िता से शादी करने को नहीं कहा है। हमने कहा था, ‘क्या तुम उससे शादी करने जा रहे हो? इस मामले में हमने जो कहा था, उसकी पूरी तरह से गलत रिपोर्टिंग की गई थी।’

बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट में मोहित सुभाष चव्हान की जमानत याचिका पर सुनवाई चल रही थी। महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिक प्रोडक्शन कंपनी में टेक्नीशियन मोहित पर एक स्कूली बच्ची से रेप का आरोप है और उस पर बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POSCO) की गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज है।

खबरों के अनुसार चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा था कि, ”यदि आप शादी करना चाहते हैं तो हम मदद कर सकते हैं। यदि नहीं तो नौकरी जाएगी और जेल जाना होगा। जस्टिस ने आरोपी से कहा कि, यदि बेल चाहिए तो तुम्हें पीड़िता से शादी करनी होगी। वरना जेल से छुटकारा नहीं मिलेगा।

चीफ जस्टिस ने एक और मौका देते हुए आरोपी से पूछा, ”क्या तुम उससे शादी करोगे?” आरोपी के वकील ने कहा, ”हम बातचीत करके बताऊंगा।” चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि आरोपी को लड़की को लुभाने और रेप करने से पहले सोचना चाहिए था। वह जानता था कि वह सरकारी कर्मचारी है।

गौरतलब है कि, अगर अदालतों में न्याय मिलने की दर देखी जाए तो साल 2002 से 2011 के बीच सभी मामलों में यह लगभग 26 प्रतिशत तक रही थी। हालांकि, साल 2012 के बाद अदालतों में फैसले मिलने की दर में कुछ सुधार देखने को जरूर मिला लेकिन इसके बाद साल 2016 में यह दर दोबारा गिरकर 25 प्रतिशत पर आ गई।

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