देशभर में 29 मार्च को रंगों का त्योहार होली खेली जाएगी। होली की शुरूआत मथुरा और काशी में हो चुकी है। मथुरा में इसकी शुरूआत लड्डू होली से होती है। वहीं काशी विश्वनाथ में चिता भस्म की होली होती है। जी हां यहां पर जली हुई चिता की राख के साथ होल खेली जाती है। हरिश्चंद्र घाट पर पूरे साल मातम का माहौल रहता है। साल में एक दिन लोग यहां पर रंगो और भस्म के साथ हर्षो उल्लास के साथ पर्व को मनाते हैं। भस्म होली के बाद ही काशी में रंगों की होली खेली जाती है।
मुक्तिधाम भोले की नगरी में महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती। चौबीसों घंटें चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता ही रहता है।
चारों तरफ लोग अपनों के दूर जाने का गम मना रहे होते हैं। हर दिन रोना-पिटना लगा रहता है। होली का पर्व ही घाट पर खुशियां लाता है। इसकी शुरुआत चिता की राख के साथ होती है।
होली के चार दिन पहले यानी कि, रंगभरी एकादशी पर सबसे बड़े मुक्तिधाम पर खेली गई होली की के पीछे प्राचीन मान्यता है। कहा जाता है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। लेकिन वो अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसीलिए रंगभरी एकादशी से विश्वनाथ इनके साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं।
भस्म होली से पंचदिवसीय होली का त्योहार शुरू हो जाता है। इसकी शुरुआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है। इसके पहले एक भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है।
हर साल काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर लोगों द्वारा बाबा मशान नाथ को विधिवत भस्म, अबीर, गुलाल और रंग चढ़ाया जाता है। चारों तरफ बज रहे डमरुओं की आवाज के बीच भव्य आरती उतारी जाती है जिसके बाद धीरे-धीरे सभी डमरू बजाते हुए ही शमशान में चिताओं के बीच आ जाते हैं।
यहां ‘हर हर महादेव’ कहते हुए लोग एक-दूसरे को चिता-भस्म लगाते हुए विचित्र होली खेलते हैं। एक दूसरे को पकड़-पकड़ कर भस्म लगाते हैं।