पीएम नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालारों के दावे बड़े-बड़े हैं। सफाई, स्वच्छता मानो जैसे केंद्र सरकार का वर्ड हो। पीएम मोदी ने खुद झाड़ू लगाकर स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ किया था। लगा देश का बस कायाकल्प ही होनेवाला है दूर-दूर तक गंदगी का नामोनिशान नहीं रहेगा लेकिन उसी मोदी सरकार के स्वच्छता अभियान की पोस्टमॉर्टम रेलवे ही कर रहा है। रेल मंत्री पीयूष गोयल के मंत्रालय ने जैसे कोटद्वार रेलवे स्टेशन को अनाथ छोड़ दिया हो। यहां हर तरफ गंदगी का डेरा है। ट्रेनें आती हैं सीटी बजाती हैं यात्री सवार होते हैं और राहत की सांस लेते हैं। क्योंकि उनकी बैठने की जगह पर गंदगी पसरी है। कहीं शराब का ग्लास तो कहीं पका हुआ चावल। ऐसे में यात्री बैठें तो कहां बैठें।

रेलवे स्टेशन पर हरदम नशेड़ियों और हुड़दंगियों का बोलबाला रहता है। लेकिन स्थानीय पुलिस और रेल पुलिस को ऐक्शन लेने से परहेज करती है। कोटद्वार रेलवे स्टेशन पर जमी गंदगी की बताती है कि यहां महीनों से सफाई कर्मचारी ने कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई है।

केंद्र सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को उनके ही महकमे रेलवे ने मजाक बनाकर रख दिया है। कहने को यहां स्टेशन मास्टर हैं लेकिन सवाल पूछने पर खुद को मजबूर बताते हैं। स्टेशन मास्टर रामाश्रय राम का दर्द है कि उनकी मांगों को बड़े अधिकारी सुनना गंवारा ही नहीं करते।

स्टेशन के अंदर-बाहर गंदगी और बदइंतजामी फुल

कोटद्वार उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले की एक महत्वपूर्ण तहसील है। जो हिमालयी राज्य उत्तराखंड के मुख्य प्रवेश बिंदुओं में से एक है। इसे 1890 में अंग्रेजों ने बनाया था। तब इसका उपयोग हिमालयी क्षेत्र से लकड़ियों की ढुलाई के लिये किया गया। यहां पहली यात्री ट्रेन वर्ष 1901 में चलाई गयी थी। स्टेशन पर ट्रेनें तो चलाईं गईं लेकिन सफाई गदहे की सींग की तरह गायब हो गई।

हजारों यात्रियों के आने-जाने वाले स्टेशन पर संविदा पर काम कर रहे महज चार सफाईकर्मी ही है जिनका काम जमीन पर दिख रहा है। वहीं, रही सही कसर रेलवे स्टेशन के बाहर लगे टैक्सियों का बेतरतीब लाइनें पूरी कर देती हैं। पुलिस की जेंबें भरे बिना ऐसा संभव नहीं दिखता। ऐसे में तो आप भी यही कहेंगे कि, कोटद्वार रेलवे स्टेशन के अंदर और बाहर गंदगी और बदइंतजामी फुल और यात्री सुविधा नील। सफाई अभियान का माखौल उड़े फुल।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here