देश में कुदरत का कहर जारी है। एक तरफ बारिश से बर्बादी तो दूसरी तरफ सूखे की मार। यानि देश के हर कोनों में मानसून की मार से लोग कराह रहे हैं। कहीं पर ज्यादा बारिश से लोगों का जीना मुहाल है। तो कहीं बूंद बूंद के लिए लोग तरस रहे हैं। पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत में मानसून में भी सामान्य से कम बारिश हुई है. अभी तक इन इलाकों में सामान्य से नौ फीसदी कम बारिश हुई है। जिससे सूखे जैसे हालात पैदा हो गए हैं। .जुलाई के शुरूआती दस दिनों में ये आंकड़ा सोलह फीसदी से भी कम रहा है. भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक बंगाल की खाड़ी के आसपास हलचल में कमी कम बारिश से ये हालात पैदा हुए हैं। जून से अब तक सिर्फ एक लो प्रेशर सिस्टम बंगाल की खाड़ी पर बन सका है. अल नीनो का असर भी मौसमी उथलपुथल पर पड़ रहा है।
अब मानसून के कमजोर होने का सबसे ज्यादा असर खरीफ की फसलों पर पड़ रहा है। ज्यादातर खरीफ की फसलों की बुआई जुलाई में होती है। अभी तक किसान किसी तरह इंजन, नलकूप और नहर के सहारे धान की रोपाई शुरु तो कर चुके हैं, लेकिन बारिश न होने की वजह से महज पन्द्रह फीसदी धान की ही रोपाई हो सकी है। कमजोर मानसून को लेकर कृषि मंत्रालय ने अलर्ट जारी किया है। जाहिर है किसान की चिंतायें बढ़ गयी हैं तो सरकार भी परेशान है। विपक्ष को भी सरकार की तैयारियों पर निशाना साधने का मौका मिल गया है।
ऐसा नहीं है कि आसमान में बादल नहीं आते हैं पर बीते दस दिनों से छिटपुट बूंदाबदी होती है और बादल गायब हो जा रहे हैं। बादलों की ये लुकाछिपी किसानों के लिए चुनौती भरी है। कृषि विशेषज्ञ ये आशंका भी जता रहे हैं कि बारिश की कमी से धान रोपाई का रकबा घट जाएगा। जाहिर है अगर यूपी में बारिश नहीं हुए तो किसान एक बार फिर कराहेंगे।