भारतीय रेलवे के 23 स्टेशन अब निजी कंपनियों के हाथों बेच दिए जायेंगे। यहां की साफ-सफाई से लेकर विज्ञापन और अन्य सभी तरह के कामकाज अब निजी कंपनियां देखेंगी। रेलवे के जिम्मे अब सिर्फ ट्रेन चलाना, टिकट काटना और पार्सल करने का काम ही होगा।
इन 23 स्टेशनों में लोकमान्य तिलक, पुणे, ठाणे, विशाखापत्तनम, हावड़ा, इलाहाबाद, कानपुर सेंट्रल, उदयपुर सिटी, कामख्या, जम्मूतवी, फरीदाबाद, दिल्ली, विजयवाड़ा, सिकंदराबाद, रांची, बेंगलुरु कैंट, यशवंतपुर, चेन्नई सेंट्रल, कालीकट, भोपाल, इंदौर, मुंबई सेंट्रल, बांद्रा टर्मिनल और बोरीवली के स्टेशन शामिल हैं।
दरअसल इन 23 स्टेशनों को निजी कंपनियां अपने हाथ में ही रखेंगी। वहां निर्धारित राशि में यात्रियों के लिए आधुनिक सुविधाओं के साथ स्टेशनों को नए कलेवर में तैयार किया जाएगा। इसके लिए स्टेशनों की अहमियत के आधार पर वहां विकास कार्य की राशि तय कर दी गयी है। विकास कार्य करने वाली कंपनियों के पास उस स्टेशन से विज्ञापन और अन्य स्रोतों से आने (टिकट और पार्सल को छोड़कर) वाली आय का मालिकाना हक 45 वर्षों के लिए होगा।
आपको बता दें कि इन स्टेशनों में रेलवे ने सबसे ज्यादा कीमत हावड़ा स्टेशन की रखी है। हावड़ा को सबसे ज्यादा 400 करोड़ और उसके बाद चेन्नई सेंट्रल स्टेशन को 350 करोड़ रुपए से संवारा जाएगा। रेलवे के मुताबिक, निजी निवेश से इन स्टेशनों की सेवाएं विश्वस्तरीय हो जाएंगी। निजी हाथों में जाने से यात्री सुविधाएं बेहतर और प्रभावी हो जाएंगी। फिलहाल स्टेशन से होने वाली आमदनी में कंपनी और रेलवे की हिस्सेदारी अभी तय नहीं हो पाई है। पर शायद कुल आमदनी का आधा-आधा या फिर निजी सेक्टर को 67 व रेलवे को 33 फीसदी का लाभ देने पर सहमति बन सकती है।
वैसे रेलवे अधिकारियों का अनुमान है कि स्टेशन की व्यवस्थाएं, खाना-पीना, पार्सल, सफाई, रिटायरिंग रूम का काम निजी हाथों में जाने के बाद रेलवे स्टॉफ पर हर महीने खर्च होने वाले 70 करोड़ रुपए का भार अब खत्म हो जाएगा। इस निजीकरण से करीब 2000 रेलवे कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी जो अभी स्टेशन के अलग-अलग विभागों में काम करते हैं। केवल इतना ही नहीं, उन्हें दूसरी जगह पर भी भेजा जा सकता है। इसी के साथ रेलवे संसाधन और सुविधाओं पर खर्च करने वाली राशि भी अब बच जाएगी।