Vikram Samvat: हमारे सभी शुभ कार्यों, संस्कार, विवाह, मुंडन, नामकरण आदि पंचाग और संवत्सर पर आधारित होता है। ऐसे में हमारी संस्कृति में संवत का विशेष महत्व बताया गया है। ऋग्वेद के अनुसार दीर्घतमा ऋषि ने युग-युगों तक तपस्या करके ग्रहों, उपग्रहों, तारों, नक्षत्रों आदि की स्थितियों का आकाश मंडल में ज्ञान प्राप्त किया। भारत के महान राजा विक्रमादित्य ने इसी दिन शकों का उन्मूलन किया था और शक संवत का प्रवर्तन किया था।
पहले ये संवत मालव कहलाता था। शकों ने इस पर अधिपत्य किया तो राजा विक्रमादित्य ने मालववर्णों की सहायता से शकों का उन्मूलन किया।राष्ट्रीय स्मृति में नया संवत चलाया गया। जिसे नाम दिया शक संवत। उन्होंने 57 ईसा पूर्व Vikram Samvat चलाया। सम्राट विक्रमादित्य एक चक्रवर्ती सम्राट थे जिनकी उदारता, ज्ञान और पराक्रम की चर्चा आज भी होती है।
राजा विक्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ ‘Vikram Samvat‘
राजा विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने अपनी जीत के साथ ही हिंदू विक्रम संवत की शुरुआत की थी। इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का विक्रम संवत पड़ा। माना जाता है कि सप्ताह के जिस भी दिन से नवसंवत्सर की शुरुआत होती है, वही ग्रह वर्ष का राजा कहलाता है।ऐसे में इस वर्ष के राजा शनिदेव हैं।
अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे है ‘Vikram Samvat‘
जानकारी के अनुसार राजा विक्रमादित्य ने Vikram Samvat की शुरुआत की थी। उनके समय में सबसे बड़े खगोल शास्त्री वराहमिहिर थे। जिनके सहायता से इस संवत के प्रसार में मदद मिली। ये अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे चल रहा है।
इस संवत् का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। 12 महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य और चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है।
12 राशियां ही असल मं 12 सौर मास हैं। पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण किया गया है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।
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