Pakistan तालिबान के इस कट्टर विरोधी को करता है सपोर्ट, काबुल हमले में भी शामिल था

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पाकिस्तान (Pakistan) तालिबान का सी है और विरोधी भी, पाकिस्तान एक तरफ तालिबान को समर्थन दे रहा है तो वहीं दूसरी तरफ तालिबान के कट्टर दुश्मन आईएसआईएस-के (ISIS-K) को भी समर्थन दे रहा है।

पाकिस्तान (Pakistan) तालिबान साथी भी हैं और विरोधी भी, पाकिस्तान एक तरफ तालिबान को समर्थन दे रहा है तो वहीं दूसरी तरफ तालिबान के कट्टर दुश्मन आईएसआईएस-के (ISIS-K) को भी समर्थन दे रहा है। कुछ समय पहले काबुल में विस्फोट हुए थे, उनमें से कुछ हमलावरों की पहचान हुई, इनमें से अक आतंकी की पहचान अब्दुल रहमान अल लोगारी (Abdul Rahman Al Logari) के रूप में हुई है, जिसने तालिबान और अमेरिकी सुरक्षा बलों का घेरा तोड़ते हुए इस हमले को अंजाम दिया। यह आतंकी पाकिस्तान से है और इसके अलकायदा से भी संबंध हैं।

वहीं काबुल के गुरुद्वारा पर हमले का एक और आरोपी और ISIS-K के का आतंकी अमीर मावलवी अब्दुल्ला उर्फ असलम फारूकी (Amir Mawlawi Abdullah alias Aslam Farooqui) को चार अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया था, जो कि पाकिस्तानी नागरिक है। यह हक्कानी नेटवर्क के साथ मिलकर काम करता था। फारूकी को चार अन्य पाकिस्तानी नागरिकों के साथ गिरफ्तार किया गया था। उसे अफगान जेल से रिहा करा लिया गया था और जब भारत ने पूछताछ करने के लिए मंजूरी मांगी तो पाकिस्तान ने ISKP प्रमुख की हिरासत की मांग करते हुए कहा कि वह पाकिस्तान विरोधी गतिविधियों में शामिल था, इस वजह से उसे पाकिस्तान को सौंपा जाए। दरअसल पाकिस्तान को डर था कि ISKP प्रमुख कहीं पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को न उगल दे।

माना जा रहा है कि इस्लामिक स्टेट और ISIS-K के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं, जो तालिबान के भी कट्टर विरोधी हैं और आने वाले समय में एक दूसरे के आमने सामने आ सकते हैं। देखने वाली बात ये होगी कि इसमें पाकिस्तान की क्या भूमिका होगी

अफगानिस्तान में तालिबान से भी बड़ा खतरा बना आईएसआईएस-के

कुछ समय पहले अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट पर हमले की जिम्मेदारी भी आईएसआईएस-के ने ली थी, हमले में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें लगभग 13 अमेरिकी सैनिक थे। यूएस मिलिट्री अकेडमी वेस्ट पॉइंट में आंतकवाद विषय की विशेषज्ञ अमीरा जदून और जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में चरमपंथ के विषय पर शोधार्थी एंड्रियू माइंस वर्षों से आईएसआईएस-के पर नजर रख रहे हैं, उन्होंने बताया कि तालिबान से भी बड़ा खतरा यहां के लिए आईएसआईएस-के है, तालिबान का उद्देश्य सरकार बनाना है, जबकि इसका उद्देश्य अस्थिरता पैदा करना है।

क्या है आईएसआईएस-के

माइंस ने बताया कि इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत में आईएसआईस-के, आईएसकेपी और आईएसके के नाम से भी जाना जाता है और यह इस्लामिक स्टेट आंदोलन से संबंधित है। इसे इराक और सीरिया में सक्रिय इस्लामिक स्टेट से मान्यता और प्रशिक्षण मिली है। इसकी स्थापना जनवरी 2015 में हुई थी, इसनें उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पकड़ बना ली।

आईएसआईएस-के की स्थापना पाकिस्तानी तालिबान, अफगान तालिबान और इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान के पूर्व सदस्यों ने की। समूह ने अन्य समूहों के आतंकवादियों को मिला लिया। इस समूह की एक सबसे बड़ी ताकत है, इसके लड़ाकों और कमांडरों का स्थानीय होना। आईएसआईएस-के इस्लामिक स्टेट आंदोलन के लिए मध्य और दक्षिण एशिया में विस्तार कर रहा है और प्रमुख जिहादी संगठन के रूप में खुद को मजबूत करना है। इसके निशाने पर अफगानिस्तान की अल्पसंख्यक हजारा और सिख जैसी आबादी है। साथ ही यह पत्रकारों, सहायता कर्मियों, सुरक्षा कर्मियों और सरकार को भी निशाना बनाता है।

आईएसआईएस-के ने बड़े हमलों के दिए थे संकेत

आईएसआईएस-के अफगान तालिबान को अपने रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है। आईएसआईएस- के मानता है कि तालिबान का उद्देश्य केवल अफगानिस्तान में सरकार बनाना है। आईएसआईएस-के ने तालिबान के ठिकानों को भी निशाना बनाया। आईएसआईए-के का लक्ष्य अभी अपने लड़ाकों की फौज तैयार करना है, बड़े हमले के उसने संकेत दिए हैं। अफगानिस्तान के लिए आईएसआईएस-के तालिबान से भी बड़ा खतरा बन गया है। इसका सरगना शाहब अल-मुहाजिर है।

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