Christmas bells की झंकार के बीच तैयारियां शुरू, जानिए क्रिसमस ट्री और सांता से जुड़े सुने-अनसुने किस्‍से

Christmas : क्रिसमस से ठीक एक दिन पूर्व यानी 24 दिसंबर का दिन ईसाइ लोग ईस्‍टर ईव के रूप में सेलिब्रेट करते हैं। इसके बाद 25 दिसंबर को घरों में जश्‍न मनाया जाता है, जोकि लगातार 12 दिन यानी 5 जनवरी तक चलता है।

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Christmas : साल 2022 जाने का वक्‍त नजदीक है, इसके साथ ही एक ऐसा खास मौका भी आ रहा है, जिसका सभी को खासतौर से क्रिश्चियन समुदाय को सालभर से इंतजार रहता है।ये मौका है क्रिसमस का।क्रिसमस यानी ऐसा पर्व जिस दिन ईसा मसीह का जन्‍म हुआ था।ये दिन ईसाईयों के लिए बेहद खास है, इसीलिए इसे ‘बड़ा दिन’ भी कहते हैं। आइए जानते हैं क्रिसमस के इतिहास से लेकर सांता और क्रिसमस ट्री के रोचक सफर के बारे में।

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Christmas : क्रिसमस से फेस्टिवल ‘ट्वेल्थ नाइट’ की होती है शुरुआत

Christmas :क्रिसमस से ठीक एक दिन पूर्व यानी 24 दिसंबर का दिन ईसाइ लोग ईस्‍टर ईव के रूप में सेलिब्रेट करते हैं। इसके बाद 25 दिसंबर को घरों में जश्‍न मनाया जाता है, जोकि लगातार 12 दिन यानी 5 जनवरी तक चलता है।लोग खूब एन्‍जॉय करते हैं,एक-दूसरे को बधाई देते हैं, केक खाते और खिलाते हैं।ध्‍यान योग्‍य है कि यूरोप में लगातार 12 दिनों तक मनाए जाने वाले उत्‍सव को ट्वेल्थ नाइट के नाम से जाना जाता है।

Christmas: जानिए 25 दिसंबर को ही क्‍यों मनाते हैं क्रिसमस?

जानकारी के अनुसार बाइबल में जीसस क्राइस्‍ट के जन्‍म की तिथि नहीं दी गई है।बावजूद इसके हर वर्ष क्रिसमस 25 दिसंबर को ही सेलिब्रेट किया जाता है।हालांकि इस तारीख को लेकर कई बार विवाद भी हुआ।प्राप्‍त जानकारी केअनुसार 336 ई पूर्व में रोमन के पहले ईसाई सम्राट के शासनकाल में सबसे पहले क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया गया था। इसके कुछ वर्ष बाद पोप जुलियस ने आधिकारिक तौ पर जीसस के जन्‍म को 25 दिसंबर को ही मनाने का ऐलान किया, तभी ये डेट क्रिसमस के रूप में मनाई जाने लगी।

Christmas: आखिर क्‍या क्रिसमस ट्री डेकोरेट करने की वजह?

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यूरोप की गिनती ठंडे प्रदेश के तौर पर होती है।यहीं पर पाए जाने वाला फर नामक पेड़ को सजाकर आज से हजारों वर्ष पूर्व लोग विंटर फेस्टिवल सेलिब्रेट करते थे।इसके साथ ही साथ लोग चेरी के पेड़ की टहनियों को भी क्रिसमस के वक्‍त सजाया करते थे। वहीं जो लोग किसी कारणवश इसे खरीद नहीं पाते थे वे लकड़ी को पिरामिड का आकार देकर क्रिसमस मनाते थे।बस यहीं से शुरू हुआ क्रिसमस ट्री का रोचक सफर। आज बदलते दौर में इसका चलन और बदलाव के साथ हो रहा है। अब लोग क्रिसमस के मौके पर इस पेड़ को अपने घर, स्‍कूल, कार्यालय में लाकर सजाते हैं।इसे कैंडी, चॉकलेटस,खिलौने, रंगीन बल्‍ब, कैंडल, लाइटस, बेल्‍स और तोहफों से सजाते हैं। इसके टॉप पर बड़ा सितारा लगाया जाता है।

क्रिसमस ट्री को लेकर एक और मान्‍यता है जानकारी के अनुसार इसे जर्मनी से जोड़कर भी देखा जाता है।ऐसा माना जाता है कि क्रिसमस ट्री की परंपरा शुरू करने वाला देश जर्मनी ही था।एक दिन पेड़ को बर्फ से ढके देखा गया और जब सूरज की रोशनी पेड़ पर पड़ी तो दूर से चमकने लगा। पेड़ की डालियां भी दूर से जगमगा रहीं थीं।
इस घटना के बाद कुछ लोगों ने जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के सम्मान उनके सामने ट्री को लगाया।उसे सजाकर प्रार्थना करने लगे। इसके बाद से सभी लोग इस प्रक्रिया को करने लगे और देश के अन्य हिस्सों में भी यह प्रथा प्रचलित होने लगी।

Christmas: सांता की दिलचस्‍प कहानी

समाज में प्रचलित कहानियों के अनुसार करीब चौथी शताब्दी के आसपास एशिया माइनर की एक जगह मायरा जोकि अब तुर्की में है।सेंट निकोलस नाम का एक शख्स रहता था। जो बहुत अमीर था, लेकिन उनके माता-पिता का देहांत हो चुका था। वो हमेशा गरीबों की चुपके से मदद करता था। उन्हें सीक्रेट गिफ्ट देकर खुश करने की कोशिश करता रहता था।

एक दिन निकोलस को पता चला कि एक गरीब आदमी की तीन बेटियां हैं, जिनकी शादी के लिए उसके पास बिल्कुल भी पैसा नहीं है। ये बात जान निकोलस इस शख्स की मदद करने पहुंचे। एक रात वो इस आदमी की घर की छत में लगी चिमनी के पास पहुंचे और वहां से सोने से भरा बैग डाल दिया। उस दौरान इस गरीब शख्स ने अपना मोजा सुखाने के लिए चिमनी में लगा रखा था।

इस मोजे में अचानक सोने से भरा बैग उसके घर में गिरा। ऐसा एक बार नहीं बल्कि तीन बार हुआ। आखिरी बार में इस आदमी ने निकोलस ने देख लिया। निकोलस ने ये बात किसी को ना बताने के लिए कहा, लेकिन जल्द ही इस बात का शोर बाहर हुआ। उस दिन से जब भी किसी को कोई सीक्रेट गिफ्ट मिलता सभी को लगता कि ये निकोलस ने दिया। पूरी दुनिया में क्रिसमस के दिन मोजे में गिफ्ट देने यानी सीक्रेट सांता बनने का रिवाज है।

जबकि सांता की प्रचलित एक और कथा में इस बात का जिक्र है कि सांता नामक संत आयरलैंड में रहते थे।वह बहुत दयालु थे। क्रिसमस की रात को वह अपने रैंडियर कुत्‍तों की गाड़ी यानी स्‍लेज में बैठकर बच्‍चों को उपहार बांटने निकल पड़ते थे। यही प्रथा आज भी है, जब कई लोग तो कई अभिभावक सांता बनकर उपहार बांटते हैं।

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