दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार (5 जनवरी) को टेरिटोरियल आर्मी में महिलाओं की भर्ती के लिए रास्ता साफ कर दिया है। हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई भी प्रावधान जो महिलाओं को टेरिटोरियल आर्मी में भर्ती नहीं करता है वो गलत है, महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव गलत है।

दिल्ली हाईकोर्ट की कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच ने कहा कि टेरिटोरियल आर्मी अधिनियम की धारा 6 में लिखे गए शब्द “किसी भी व्यक्ति” में पुरुष और महिला दोनों शामिल होंगे। अदालत ने यह भी कहा कि कानून का कोई भी प्रावधान जो महिलाओं की भर्ती के लिए टेरिटोरियल आर्मी में प्रतिबंध लगाते हैं वो संविधान के तहत दिए गए समानता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने का ये फैसला वकील कुश कालरा द्वारा दायर याचिका पर आया जिसमें  टेरिटोरियल आर्मी में भर्ती में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में टेरिटोरियल आर्मी में भर्ती होने के लिए महिलाओं के खिलाफ “संस्थागत रूप से भेदभाव” करने का आरोप लगाया था। याचिका में यह भी कहा गया था कि प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार की मदद के लिए फिलहाल आर्मी का इस्तेमाल होता है। टेरिटोरियल आर्मी के मजबूत होने से आर्मी को इन जिम्मेदारियों से मुक्त किया जा सकेगा। याची ने कहा था कि भारतीय संविधान के तहत सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिलांए।

बता दें कि टेरिटोरियल आर्मी नियमित सेना के बाद दूसरी रक्षा पंक्ति है। टेरिटोरियल आर्मी उन स्वयंसेवकों का एक संगठन है जो सैन्य प्रशिक्षण हासिल करतें हैं ताकि उन्हें आपात स्थिति में देश की रक्षा के लिए जुटाया जा सके। अभिनेता मोहनलाल और क्रिकेटर कपिल देव और एमएस धोनी भी इसके मानद सदस्य हैं।

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