प्रतिनिधित्व कानून के सेक्शन 8(3) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए Supreme Court में याचिका दाखिल

Supreme Court: याचिका में कहा गया है कि चुने गए प्रतिनिधि को सजा का ऐलान होते ही उनका जनप्रतिनिधित्‍व अयोग्‍य हो जाना असंवैधानिक है।

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SC on Agneepath
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Supreme Court: सामाजिक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन की तरफ से प्रतिनिधित्व कानून के सेक्शन 8(3) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून के धारा 8 के भाग 3 को रद्द करने की मांग करते हुए कहा गया है, कि जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि को सजा होते ही उनकी सदस्यता जाना असंवैधानिक है।

दरसअल जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) के तहत किसी भी जनप्रतिनिधि को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा पर उनकी सदस्यता को रद्द कर दी जाती है और इसी आधार पर राहुल गांधी की सदस्यता को भी रद्द कर दिया गया है।

याचिका में कहा गया है कि चुने गए प्रतिनिधि को सजा का ऐलान होते ही उनका जनप्रतिनिधित्‍व अयोग्‍य हो जाना असंवैधानिक है। याचिका में इस बात का भी जिक्र है कि अधिनियम के चेप्‍टर-3 के तहत अयोग्‍यता पर विचार करते समय आरोपी के व्‍यवहार, गंभीरता तैसे कारकों की जांच की जानी जरूरी है।

Supreme Court: चुनौती दी गई

Supreme Court: मालूम हो कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मोदी सरनेम केस में 2 साल की सजा सुनाई गई है। जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 के तहत स्‍पीकर ने यह कार्रवाई की है।इसमें सेक्‍शन 8 (3) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।

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