सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 जनवरी) को यह साफ कर दिया कि विधानसभा को किसी कानून में बदलाव करने के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने 2012 में दाखिल एक याचिका के संबंध में शीघ्र सुनवाई की मांग पर सुनवाई के दौरान यह बात कही।

इस याचिका में 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम की धारा 3 (3) में आवश्यक संशोधन के आदेश या निर्देश जारी करने की अपील की गई थी ताकि  बोधगया मंदिर प्रशासनिक समिति के अध्यक्ष के रूप में हिंदू को नहीं बल्कि किसी बौद्ध को नियुक्त किया जा सके।

दरअसल 1949 के अधिनियम की धारा 3 में बोधगया मंदिर की ज़मीन और उसकी संपत्तियों  के प्रबंधन और देखभाल के लिए एक 8 सदस्यीय समिति के गठन की बात की गई है। समिति में चार सदस्यों का हिंदू होना अनिवार्य है और इसमें चार बौद्ध सदस्य रहते हैं। इसके अलावा धारा 3 (3) के तहत गया जिले के जिलाधिकारी को इस समिति के पदेन अध्यक्ष के रूप में रखना तय किया गया है। यह समिति गठन के तीन वर्षो तक प्रभावी रहती है।  हालांकि अधिनियम के प्रावधानों के तहत राज्य सरकार को उस अवधि के लिए समिति के अध्यक्ष के तौर पर एक हिंदू को नियुक्त करना होगा जब जिलाधिकारी एक गैरहिंदू हो। याचिका में इन्हीं प्रवाधानों को बदलने के लिए निर्देश देने की अपील की गई थी ताकी समिति के अध्यक्ष के तौर पर किसी बौद्ध को नियुक्त किया जा सके।

याचिका का निपटारा करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जब तक अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती नहीं दी जाती है हम इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

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