सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट को लेकर दिए गए अपने फैसला को फिलहाल बरकरार रखा है। बुधवार (16 मई) को केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अभी फैसले में कोई बदलाब नहीं होगा। जस्टिस आदर्श गोयल ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संसद भी ऐसा कानून नहीं बना सकती जो नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन करता हो और बिना प्रक्रिया के पालन किए किसी को भी जेल में डाल दिया जाए। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि कोर्ट इस तरह नया कानून नहीं बना सकता, ये उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एकतरफा बयानों के आधार पर किसी के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे तो समझिए हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं…कोर्ट ने ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार को सरंक्षण देने के लिए दिया है। इस पर अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि जीने का अधिकार बडा व्यापक है। इसमें रोजगार का अधिकार, शेल्टर भी मौलिक अधिकार हैं, लेकिन विकासशील देश के लिए सभी के मौलिक अधिकार पूरा करना संभव नहीं है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मिली उन शिकायतों पर ही गिरफ्तारी से पहले जांच की जरूरत है जब शिकायत मनगढ़ंत या फर्जी लगे। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि उनका मकसद किसी आरोपी को बचाने की नहीं है बल्कि कोर्ट चाहता है कि किसी निर्दोष को सजा ना भुगतनी पड़े।

20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अब मामले की सुनवाई जुलाई में होगी।

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