अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट के प्रावधानों में कुछ बदवाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (12 अप्रैल ) को लिखित जवाब दाखिल किया। केंद्र ने कहा है कि इस फैसले से देश मे अफरातफरी और सौहार्द बिगड़ गया है और इस पर पुनर्विचार किया जाए।

केंद्र ने कहा कि कोर्ट के इस फैसले ने मुख्य कानून की धाराओं को और कमजोर कर दिया है। सरकार ने कोर्ट से तुरंत गिरफ्तारी पर रोक का आदेश वापस लेने की मांग की है साथ ही सरकार ने कहा है कि कोर्ट कानून में इस तरह बदलाव नहीं कर सकता। कानून बनाना संसद का अधिकार है और ये फैसला संविधान में दिए गए शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन है। संज्ञेय अपराध में FIR लिखना पुलिस अधिकारी का काम है और खुद सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी मामले में ऐसा आदेश दिया है और अब DSP की तरफ से जांच के बाद SC/ST एक्ट मामले में FIR का आदेश गलत है। सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य नागरिक की गिरफ्तारी से पहले SSP की मंज़ूरी लेने का आदेश भी गलत है। कोर्ट के इस फैसले ने एक्ट को कमज़ोर किया है। इसे वापस लिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 3 अप्रैल को केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए 20 मार्च के अपने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वो इस पर 10 दिन बाद विस्तार से सुनवाई की करेगा और तब तक सरकार अपना जवाब दे।

20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए एससी-एसटी ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने और अग्रिम जमानत के प्रावधान को मंजूरी देने का फैसला दिया था। जिसके बाद 2 अप्रैल को दलित संगठनों की ओर से भारत बंद का आह्वान किया गया था। इस घटना में 8 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।

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