सियासत में नाम और विरासत का अपना महत्व है… नेता और जनता को इनसे बड़ी उम्मीदें रहती हैं। यदि विरासत गांधी परिवार की हो और नाम सोनिया गांधी का, तो उम्मीदों का इतराना स्वाभाविक है… उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट गांधी परिवार की विरासत मानी जाती है…अपवादों को छोड़ दें तो इस सीट की नुमाइंदगी इसी परिवार ने ही की है… यहीं से सांसद चुनकर इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी थीं… वर्तमान में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी यहां की सांसद हैं… आदर्श ग्राम योजना के तहत सांसदों के कामकाज का जायजा लेने के क्रम में आज हम सोनिया गांधी के गोद लिए गांव उड़वा पहुंचे… स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राणा बेनी माधव सिंह की जन्मस्थली उड़वा गांव को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नवंबर 2014 में गोद लिया था… रायबरेली मुख्यालय से 20 किलो मीटर और इलाहाबाद-लखनऊ हाईवे पर जगतपुर ब्लाक से 10 किलोमीटर दूर स्थित उड़वा गांव की कुल आबादी 5 हजार है… देश की राजनीति में बड़ा हैसियत रखने वाली सोनिया गांधी ने जब उड़वा गांव को गोद लिया तो यहां के लोग फूले नहीं समा रहे थे… गांव वालों को खुद में खास होने का अहसास हो रहा था…

आज इस गांव को गोद लिए करीब साढ़े तीन साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन उड़वा अब भी बदहाल है… सोनिया गांधी तो दूर, गांव में कोई दूसरा नेता भी नहीं आया है… गांववालों का आरोप हैं कि सोनियां गांधी ने उड़वा को गोद लेने के बाद लावारिस छोड़ दिया

किसी भी जगह के विकास का पैमाना वहां की बुनियादी संरचना होती है और इसमें सड़क का महत्वपूर्ण स्थान होता है … लेकिन गांव को जगतपुर से जोड़ने वाली सड़क, एक सीसी रोड और एक इंटरलॉक सड़क को छोड़ दें तो यहां के तमाम सड़कें बदहाल हैं… गांव के अंदर के रास्ते कीचड़, गड्ढों और पानी से भरे हैं… आप देश सकते है जरा सी बारिश से यहां का क्या हाल हो गया… पूरी सड़क पर पानी भर गया है… बारिश होने के बाद इन रास्तों पर दो कदम चलना दूभर है…बारिश के दिनों में पूरे गांव में जल जमाव की स्थिति बन जाती है… सड़कों के गड्ढों में पानी भर जाता है जो कभी-कभी हादसों का सबब भी बन जाता है… गांव के ज्यदातर रास्ते किसी अति पिछड़े इलाके की तस्वीर पेश करते है…गांव में सालों पहले लगे खड़ंजे बारिश में बह गए है… अब इस सड़क की अवशेष ही बची है … सांसद आदर्श गांव बनने के बाद भी यहां एक-दो सड़कें ही बनी है…बाकी की सड़के आज भी बदहाल है

गांव में बिजली का हाल भी खस्ता है…काम के नाम पर गांव में कुछ सोलर लाइटें जरूर लगी हैं लेकिन इनमें से कई खराब हो चुकी हैं…

गांव में पीने के पानी की भी बड़ी समस्या है…कुछ हैंडपंप को छोड़ दें तो ज्यादातर हैंडपंप खराब पड़े हैं… ग्रामीणों की प्यास अब भी कुएं ही बुझा रहे हैं…हालांकि 90 लाख की लागत से पानी की टंकी का निर्माण प्रस्तावित है लेकिन इस पर काम कब शुरू होगा ये अब भी बड़ा सवाल बना हुआ है

सोनिया गांधी के गोद लिए गांव उड़वा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान दूर-दूर तक नजर नहीं आता…पूरे गांव में गंदगी पसरी हुई है… जिधर देखिए उधर गंदगी ही नजर आती है… वहीं गांव में शौचालय नहीं के बराबर बने है ऐसे में गांव के 90 प्रतिशत लोग अभी भी खुले में शौच के लिए मजबूर हैं… गांव के जो लोग पैसे वाले हैं, उन्होंने तो घरों में शौचालय बनवा लिया है, लेकिन जो गरीब हैं वो बाहर शौच करने जाने को मजबूर हैं।’’… फंड के अभाव में स्वच्छता अभियान थम चुका है…

इंदिरा आवास, वृद्धावस्था और विकलांग पेंशन, सड़क-खड़ंजा, बिजली आदि के प्रस्ताव लेकर ग्राम प्रधान अफसरों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन कोई भी गांव की सुध नहीं ले रहा… जब गांव को गोद लेने के बाद खुद सोनिया गांधी एक बार भी गांव नहीं पहुंची है तो दूसरे अधिकारी इस गांव के विकास के प्रति कितने गंभीर होंगे ये आसानी से समझा जा सकता है…

गांव में शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो यहां एक प्राइमरी और एक मिडिल स्कूल है जिसमें 8वीं तक पढ़ाई होती है लेकिन इससे आगे पढ़ाई की यहां कोई व्यवस्था नहीं है… आठवीं के बाद की पढ़ाई के लिए 6 किलोमीटर दूर शंकरपुर जाना पड़ता है…शंकरपुर में भी 12 तक ही पढ़ाई होती है इससे आगे कॉलेज की पढ़ाई के लिए तो रायबरेली जाना पड़ता है… लड़के तो किसी तरह आगे की पढ़ाई कर भी लें लेकिन सोनिया गांधी के गांव में लड़कियों के लिए 8वीं के बाद की पढ़ाई किसी जंग लड़ने की तरह है… ऐसे में ज्यादातर लड़कियां 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं

एक तो गांव के बच्चे 8वीं से आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं वहीं गांव में रोजगार के कोई साधन नहीं… ऐसे में यहां के ज़्यादातर लड़कें बेरोजगार हैं… हर घर में एक-दो बेरोजगार लोग मिल जाएंगे…गांव की गरीबी यहां हर कदम पर आपको दिख जाएगी… गाँव के ज्यादातर घर मिट्टी के बने हुए हैं और हर तरफ बदहाली पसरी हुई है

जिस गांव के लोग एक अदद स्वास्थ्य केन्द्र के लिए सालों से तरस रहे हो तो वहां की तरक्की का हाल समझा जा सकता है… आप को जानकर हैरत होगी कि हाई प्रोफाइल सांसद सोनिया गांधी के गांव उड़वा में कोई भी स्वास्थ्य केन्द्र नहीं है… ग्रामीणों को इलाज के लिए करीब 20 किमी दूर रायबरेली जिला मुख्यालय जाना पड़ता है… ऐसे में जिसकी तबियत अगर ज्यादा खराब हुई तो अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत तक हो जाती है

जब गांव में बुनियादी सुविधाएं ही मौजूद नहीं है तो आदर्श गांव के दूसरे मानकों की बात करना ही बेमानी है… जाहिर है गांव में बैंक, डाकघर, इंटरनेट कनेक्शन, प्ले ग्राउंड और सामुदायिक केन्द्र तो सपना ही है… दरअसल आदर्श गांव उड़वा सियासी प्रतिद्वंद्विता में फंस गया है… गांव वालों का कहना है कि विधायक के पास जाने पर कहा जाता है कि ये गांव सांसद आदर्श गांव के तौर पर चयनित है इसलिए इसका विकास सांसद सोनिया गांधी कराएंगी… उधर सोनिया गांधी तो गांव को गोद लेने के बाद एक बार भी यहां आई ही नहीं…

सांसद सोनिया गांधी द्वारा गोद लिए गांव की उपेक्षा से ग्रामीणों में मायूसी और गुस्सा दोनों हैं… ग्रामीणों का कहना है कि अच्छा तो ये होता कि सोनिया गांधी इस गांव को गोद ही नहीं लेती…सियासी प्रतिद्वंद्विता की वजह से प्रधानमंत्री मोदी की किसी महत्वाकांक्षी योजना में सोनिया गांधी की दिलचस्पी न होना तो समझ में आ सकता है, लेकिन उड़वा की बदहाली तो समझ से परे है… ऐसा इसलिए, क्योंकि इसे संवारने का संकल्प खुद सोनिया ने लिया था।

एपीएन ब्यूरो

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