सजायाफ्ता लोगों को पार्टी पदाधिकारी बनने या नई पार्टी बनाने से रोकने की मांग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (12 जनवरी) को केंद्र सरकार को दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामला गंभीर है। जो लोग सजा पा चुके होते हैं उसके बावजूद पार्टी बनाकर चुनाव लड़वा रहे होते हैं।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा अगर कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता तो वो कोई भी राजनीतिक पार्टी कैसे बना सकता है साथ ही वो पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए कैसे चुन सकता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई व्यक्ति सीधे चुनाव नहीं लड़ सकता, इसके लिए वह एक राजनैतिक दल बनाने और चुनाव लड़ने के लिए लोगों का समूह बनाता है। लोकतांत्रिक गतिविधियों को करने के लिए लोगों की एक संस्था जैसे अस्पताल या स्कूल हैं, वो ठीक है लेकिन जब शासन के क्षेत्र की बात आती है तो यह मामला अलग है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का अधिकार दिए जाने की मांग की है. हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा है कि वो पार्टियों का रजिस्ट्रेशन तो करता है लेकिन चुनावी नियम तोड़ने वाली पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई का उसे अधिकार नहीं है। इसके लिए कानून में बदलाव किया जाना चाहिए। याचिका में ये भी कहा गया था कि अगर कोई पार्टी आपराधिक केस में दोषी नेता को पदाधिकारी बनाए रखे तो उसका रजिस्ट्रेशन रद्द होना चाहिए।

चुनाव आयोग ने ये भी कहा है कि वो 20 साल से केंद्र सरकार से कानून में बदलाव का अनुरोध कर रहा है लेकिन सरकार ने इस मसले पर सकारात्मक रवैया नहीं दिखाया है। इस मामले पर अगली सुनवाई 26 मार्च को होगी।

दरअसल बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दाखिल की है और दोषी करार व्यक्तियों के पार्टी बनाने या पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने की मांग की है।

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