गोरक्षकों द्वारा हिंसा के मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (3 जुलाई) को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में विस्तृत आदेश जारी करेगा और पीड़ित को मुआवजा, मामलों की निगरानी, जवाबदेही तय करने पर भी आदेश जारी करेगा।

गोरक्षा के नाम पर देश में हो रही हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है और मामले में राज्यों को सख्ती बरतने को कहा है। सुनवाई के दौरान CJI दीपक मिश्रा ने कहा कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा की वारदातें नहीं होनी चाहिए, चाहे कानून हो या नहीं, कोई भी समुह कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता और ये राज्यों का दायित्व है कि वह इस तरह की वारदातें ना होने दे। मंगलवार (3 जुलाई) को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला ने भी इन घटनाओं से निपटने और घटना होने के बाद अपनाए जाने वाले कदमों पर अपने विस्तृत सुझाव कोर्ट के सामने रखे।

सुनवाई के दौरान मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवज़ा देने का मामला भी एक सीनियर वकील द्वारा कोर्ट में उठाया गया और कहा गया कि मुआवजा देते वक्त धर्म, जाति और लिंग को ध्यान मे रखा जाए। इस पर चीफ जस्टिस ने दलील से असहमति जताई और कहा कि पीड़ित को चोट कितनी ज़्यादा लगी है, मुआवजे देने का यही आधार होना चाहिए। पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है और उसे अलग-अलग खांचे में नहीं बांटा जा सकता।

केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि कानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है और केंद्र ने राज्यों को एडवायजरी जारी कर दी है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर कहा था कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं पर रोक लगनी चाहिए और हर जिले में नोडल अफसर बनाए जाएं।

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