आधार की अनिवार्यता और संवैधानिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (5 अप्रैल) को भी सुनवाई हुई। मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि वो केंद्र सरकार के इस तर्क से सहमत नहीं है कि आधार,सिस्टम से संबंधित हर मर्ज की दवा है।

संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या आप किसी की निजता के अधिकार का हनन कर सकते हैं ? आप उसको सरकारी सुविधाएं देते हैं और उसकी निजी जानकारी को राज्य अपने पास रखता है लेकिन ये कैसे सुनिश्चित होगा कि ये डेटा कहीं और इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। ये एक संवैधानिक सवाल है कि क्या आप किसी को सरकारी सुविधा देकर उसकी निजी जानकारी ले सकते हैं? चाहे वो किसी भी वर्ग या तबके का हो। आखिर ये उसकी निजता का सवाल है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राइट टू फूड जैसे मौलिक अधिकारों को पूरा करने के लिए आधार को जरूरी किया जाना चाहिए क्योंकि इससे लोगों के इन अधिकरों को सुरक्षित रखा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि आधार करोड़ो रूपये के बैंक धोखाधड़ी में कारगर नहीं है क्योंकि जिसने धोखाधड़ी की है उसकी पहचान होती है, जैसे वो कौन है या उसकी कौन सी कंपनी है। लोन लेने वाला कानूनी तरीके से लोन लेता है और कंपनी के हिसाब से लेता है इसमें आधार कोई मदद नहीं करता क्योंकि उसकी पहचान छुपी नहीं होती। जब बैंक अधिकारी लोन देता है तो वो जानता है कि वो किसे लोन दे रहा है, ऐसे में आधार इसको कैसे रोक सकता है?

इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि आप हो सकता कि नीरव मोदी की बात कर रहे हैं, लेकिन आधार बेनामी संपति और बेनामी ट्रांजेक्शन को लेकर बहुत कारगर है। मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।

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