फल की इच्छा कर के ही कर्म करो! जानें ‘द असुरा वे’ में ऐसा क्यों कहते हैं आनंद नीलकंठन

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आपने अधिकतर लोगों को यह कहते सुना होगा ‘कर्म करो, फल की इच्छा मत करो’ लेकिन आपके मन में सवाल उठा होगा कि बिना फल की इच्छा किए कोई कर्म कैसे कर सकता है। मतलब किसी भी काम को करने से पहले हम उसके नतीजे के बारे में जरूर सोचते हैं। लेखक आनंद नीलकंठन अपनी किताब ‘द असुरा वे’ में इसी सिद्धांत को उलट देते हैं और कहते हैं कि यह फल की इच्छा है जो आपको कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। उनकी किताब में चीजों को देखने का एक अलग नजरिया पेश किया गया है।

लेखक इस किताब में बताते हैं कि कलियुग में जीवन जीने का तरीका ‘आसुरी’ होना चाहिए। क्योंकि आमतौर पर कलियुग में जीवन जीने का तरीका जो पारंपरिक रूप से बताया गया है वो असरदार नहीं है। लेखक एक आसुरी रास्ता बताते हैं जो कि आपको बेहतर जीवन जीने और सफल होने का मंत्र देता है। लेखक बताते हैं कि असुरों के पास ऐसा क्या था जिससे वे देवताओं से भी अधिक सफल हुए।

आनंद नीलकंठन बताते हैं कि आमतौर पर काम, क्रोध, मद,मोह, लोभ और ईर्ष्या को बुरा बताया जाता है लेकिन जरूरी नहीं हमेशा ऐसा हो। पौराणिक कथाओं के जरिए लेखक बताते हैं कि कैसे ये छह चीजें आपको सफल बना सकती हैं। बतौर लेखक क्रोध सभी को आता है और ऐसा होना सामान्य बात है। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि क्रोध करना गलत है। वे आचार्य चाणक्य का उदाहरण देकर बताते हैं कि कैसे क्रोध को सही दिशा दी जाती है।

दूसरी सलाह के रूप में आनंद लिखते हैं कि सामान्यत: कहा जाता है कि व्यक्ति को संतोष रखना चाहिए लेकिन ऐसा कर के व्यक्ति अपनी तरक्की को रोकता है। व्यक्ति को अंसतोषी होना चाहिए और अपने असंतोष को सही तरह से इस्तेमाल करना चाहिए। भौतिकवादी होना गलत नहीं है।

‘निष्काम कर्म’ के सिद्धांत को लेखक खारिज करते हैं और कहते हैं कि व्यक्ति को खुद के जुनून को पहचानना चाहिए। अपनी इच्छा के बारे में अच्छे से सोचना चाहिए और जांचना चाहिए। सपने देखना और इच्छाएं रखना बुरा नहीं है। अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहिए।

इस किताब की खास बात ये है कि लेखक बताते हैं कि ईर्ष्या क्यों होती है और कैसे इसको सकारात्मक रूप से लेना चाहिए। वे इसके लिए उदाहरण देते हैं कैसे ब्रह्मा और विष्णु के बीच प्रतिस्पर्धा थी। ईर्ष्या को सही दिशा देने की जरूरत पर लेखक जोर देते हैं। इसके अलावा लेखक बताते हैं कि कई बार विनम्रता जानलेवा साबित हो सकती है और व्यक्ति को अपने अहं को गौरव में बदलना चाहिए। वे छत्रपति शिवाजी महाराज और महात्मा गांधी का उदाहरण देते हैं कि कैसे इन लोगों ने अपने आत्मसम्मान पर लगी चोट को अपनी प्रेरणा में बदला।

लोभ को लेकर लेखक बताते हैं कि कई बार नैतिकता आपको सीमित कर देती है। शख्स को अपनी महत्वकांक्षा को जांचना चाहिए। इसके लिए वे रावण और सुदामा का उदाहरण भी देते हैं। लेखक बताते हैं कि मोह होना जरूरी है क्योंकि इसके चलते ही जीवन चक्र बना हुआ है।

अंत में वे ‘आनंद मार्ग’ के बारे में बताते हैं। जीवन का सार हर एक पल को खुशी से जीने में है। चार्वाक का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि कर्ज लेकर घी पीने की बात इसलिए कही गई है जिससे कि हम स्वयं के जीवन का जितना हो सके आनंद उठाएं।

लेखक परिचय

लेखक आनंद नीलकंठन बाहुबली ट्राईलॉजी के लेखक हैं। उन्होंने ‘असुर’ भी लिखी है। इसके बाद उन्होंने बेहद सफल ‘अजय’ सीरीज़ पेश की। आनंद ने सिया के राम, अशोक, महाबली हनुमान जैसी लोकप्रिय टीवी सीरीज के लिए स्क्रिप्ट लिखी है।

किताब के बारे में
पेज संख्या -224
प्रकाशक- जैको पब्लिशिंग हाउस
कीमत-320 रुपये (पेपरबैक)

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