श्रीप्रकाश शुक्ला के बहाने पुलिसिंग में तकनीक की भूमिका बताती है ‘वर्चस्व’

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यूं तो उत्तर प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर रहे श्रीप्रकाश शुक्ला पर बहुत कुछ कहा गया है और लिखा भी गया है लेकिन आज से तकरीबन 25 साल पहले वह अपराधी जो मंसूबे पाल रहा था उसके बारे में आज भी कोई सुन ले या जान ले तो यही सोचेगा कि वाकई अगर कोई अपराधी अपनी सरकार बनाने के सपने देखने लगे तो यह पूरे समाज के लिए कितनी भयावह स्थिति हो सकती है। अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला के मंसूबों को बयान करती है यूपी पुलिस में आईजी रहे चुके राजेश पाण्डेय की किताब ‘वर्चस्व’

अगर आप क्राइम बेस्ड वेब सीरीज देखने और या ऐसी पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते हैं तो राजेश पाण्डेय की यह रचना आपको बहुत भाएगी। वचर्स्व श्रीप्रकाश शुक्ला नाम के उस दुर्दांत अपराधी की कहानी है जो खूंखार इतना है कि शिकार को बेरहमी से मारता है। पुलिस से लेकर मंत्री तक सबको धमकाता है। 1997 में लखनऊ में वीरेंद्र शाही की हत्या कर श्रीप्रकाश शुक्ला सबसे पहले चर्चा के केंद्र में आता है और 22 सितंबर 1998 को एक एनकाउंटर में मारा जाता है। इसी दौरानिया जो कुछ हुआ लेखक उसके बारे में विस्तार से बताते हैं।

मैंने भी जब यह किताब पढ़नी शुरू की तो एक दिन में यह किताब पढ़ गया। किताब का धारा प्रवाह शानदार है जो पाठक की रुचि को बनाए रखता है। किताब क्यों पढ़ी जानी चाहिए इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि राजेश पाण्डेय खुद उस स्पेशल टास्क फोर्स का हिस्सा थे जिसने श्रीप्रकाश को एनकाउंटर में मार गिराया था। इस किताब की एक विशेषता यह है कि यह उस तकनीक पर भी अधिक रोशनी डालती है जिसके बल पर पुलिस ने श्रीप्रकाश को दबोचा।

चूंकि फोन या मोबाइल के जरिए यूजर की सटीक लोकेशन पता करना उस समय में इतना सहज नहीं था। पुलिस महकमे के लिए भी यह अचरज भरी बात होती थी। एसटीएफ में राजेश पाण्डेय वो शख्स थे जो इस तकनीक को सबसे अच्छे से समझते थे। तकनीक की पुलिसिंग में क्या भूमिका होती है? किताब इस नजरिए से भी पढ़ने योग्य है।

लेखक किताब की पृष्ठभूमि में बताते हैं कि श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे अपराधी का जन्म ऐसे बैकग्राउंड में हुआ था जहां लोगों के मन में यह बात समा चुकी थी कि जान किसी की सुरक्षित नहीं है। आम जन में इतना भय होना और ऐसे में कानून व्यवस्था बनाए रखना कितना मुश्किल रहा होगा ,वो भी तब जब तकनीक भी इतनी एडवांस नहीं थी, पाठक इस बात को समझता है और तत्कालीन एसटीएफ की उपलब्धि को खुद सराहे बिना रह नहीं पाता है।

आप किताब पढ़ेंगे तो इस बात का विवरण भी पाएंगे कि क्या ऐसी परिस्थितियां थीं जिसने अपराध को इतना बढ़ा आकर्षण बना दिया था। आपराधिक संसार का ताना बाना कैसा है ये किताब बहुत अच्छे से पाठक को समझा देती है। क्राइम को एक विषय के तौर पर स्टडी करने वालों के लिए भी यह किताब इस चलते उपयोगी दिखती है।

संक्षेप में कहें तो श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी आधुनिक तकनीक,नए हथियार और संगठित अपराध की कहानी है। कैसे टेंडर पाने की हसरत खुद की सरकार हो, तक पहुंच जाती है। इसके अलावा श्रीप्रकाश शुक्ला शासन प्रशासन की खामियों का भी नतीजा था। इसी चलते प्रशासन को भी एसटीएफ के रूप में अपना नजरिया बदलना पड़ा।

किताब के बारे में

लेखक- राजेश पाण्डेय
पेज संख्या- 296
मूल्य-399 रुपये
प्रकाशक- राधाकृष्ण प्रकाशन

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