हर भारतीय को अपनी जड़ों का एहसास कराती है ‘वोल्गा से गंगा’

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इतिहास को पुनर्जीवित करने वाली ‘वोल्गा से गंगा’ हिंदी साहित्य की एक महान रचना है। जिसे महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है। ऐसा कहने में संशय नहीं होना चाहिए कि वोल्गा से गंगा राहुल सांकृत्यायन के जीवनभर के अध्ययन का निचोड़ है। इस किताब में यूरेशियाई भूभाग से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप तक की यात्रा की कहानी कही गयी है। 20 कहानियों में इतिहास दर्ज किया गया है। प्रत्येक कहानी का नाम एक युग को दर्शाने वाले एक केंद्रीय पात्र के नाम पर रखा गया है।

इस कहानी संग्रह की पहली कहानी ‘निशा’ 6000 ई.पू. की कहानी है जो वोल्गा के किनारे की कहानी है। लगभग 361 पीढ़ी पहले, कबीलियाई अवस्था में भी मातृसत्ता थी। वहीं आखिरी कहानी ‘सुमेर’ साल 1942 के भारत की कहानी है। इस कहानी संग्रह में राहुल बीते समय की कहानी कहते चलते हैं। इतिहास से जुड़ी छोटी छोटी बातें भी कहानियों में बताई गई हैं। कहानियों के कई चरित्रों के बारे में हमें पता होता है क्योंकि हमने इतिहास पढ़ा है जबकि कुछ किरदार ग्रंथों में मिलते हैं। कुछ पात्र काल्पनिक भी हैं। बीते समय का सांकृत्यायन ने पुन:सृजन किया है।

राहुल सांकृत्यायन के लेखन की विशेषता यह है कि वह हर विचार को जांचते परखते हैं। हालांकि उनका दृष्टिकोण मार्क्सवादी ही रहता है। वोल्गा से गंगा की कहानियों में राहुल बताते हैं कि कैसे आर्य समाज अलग-अलग परिवारों में बंट गया, कैसे ऊंच का नीचे भेद हुआ, राजा और प्रजा के बीच अंतर आया,संगठित धर्म का उदय हुआ,वर्ण व्यवस्था ने जन्म लिया,महिलाओं की स्थिति बुरी होती गई और दासता भी प्रचलित हो चली। वैदिक आर्यों के समय ऐसी व्यवस्था प्रचलित हो चली जिसमें कुछ लोग स्वयं श्रम न कर दूसरों से परिश्रम करा अपना जीवन जी रहे हैं। प्रवाहण कहानी जो 700 ई. पू. की कहानी है में बताया गया है कि कर्म और पुनर्जन्म पर लोगों के विश्वास के चलते निर्धनता हो चली है।

बता दें कि 1940-42 के दौरान राहुल जब जेल में थे तो उन्होंने ये कहानियां लिखीं। यह किताब सबसे पहले 1944 में प्रकाशित हुई थी। दक्षिण एशियाई इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए, वोल्गा से गंगा में बहुत कुछ है। किताब व्यक्ति और समाज के बीच संबंधों की गतिशीलता,मनुष्य की भावनाओं और बौद्धिकता में आती जटिलता के बारे में आपको बताती है। हर भारतीय को यह अपनी जड़ों का एहसास भी दिलाएगी और क्षेत्र में वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक माहौल के बारे में आपकी समझ में सुधार करेगी।

लेखक परिचय

राहुल सांकृत्यायन (9 अप्रैल 1893 – 14 अप्रैल 1963) का बचपन का नाम केदारनाथ पांडे था। वह एक भारतीय लेखक और बहुभाषाविद् थे। उन्होंने यात्रा वृतांत को ‘साहित्यिक रूप’ देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह भारत के सबसे अधिक यात्रा करने वाले विद्वानों में से एक थे, उन्होंने अपने जीवन के पैंतालीस वर्ष अपने घर से दूर यात्राओं पर बिताए। वह एक बौद्ध भिक्षु बन गये और अंततः मार्क्सवादी बन गये। सांकृत्यायन को उनके ब्रिटिश विरोधी लेखन और भाषणों के लिए गिरफ्तार किया गया था और तीन साल के लिए जेल में डाल दिया गया था। उनकी विद्वता के लिए उन्हें ‘महापंडित’ कहा जाता है। भारत सरकार ने उन्हें 1963 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

किताब के बारे में-

लेखक-राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक- किताब महल

कीमत- 275 रुपये (पेपरबैक)

पेज संख्या- 346

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