कैसे एक अफवाह ने बदल दिए गांधी परिवार संग प्रणब मुखर्जी के रिश्ते?

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यह तो सब जानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनकी सरकार में मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस में हाशिये पर ला दिया गया था। एक वक्त में इंदिरा के उत्तराधिकारी माने जाने वाले प्रणब को उनकी ही पार्टी ने क्यों निकाल दिया था इसका जवाब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने दिया है।

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी किताब प्रणब माय फादर में लिखा है कि प्रणब मुखर्जी और राजीव गाांधी उस समय एक रैली के लिए पश्चिम बंगाल में थे। इस दौरान उनको पता चला कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी पर हमला हुआ है। ये खबर सुनते ही तय हुआ कि दिल्ली जाया जाए।

किताब में लिखा कि जैसे ही राजीव और उनके साथी कलकत्ता से दिल्ली की फ्लाइट में बैठे और फ्लाइट ने उड़ान भरी, राजीव गांधी को जानकारी मिली कि इंदिरा गांधी का निधन हो गया है। इंदिरा गांधी के निधन के बाद से ही इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी कि उनकी जगह कौन लेगा?

चूंकि प्रणब सरकार में नंबर 2 माने जाते थे , ऐसे में ये माना जा सकता था कि वे अंतरिम प्रधानमंत्री बनेंगे। इस कयास ने प्रणब मुखर्जी और गांधी परिवार के आगे के रिश्तों की दिशा तय की। लेखिका खुद भी मानती हैं कि शायद यही वजह थी कि राजीव गांधी को भी लगता था कि प्रणब मुखर्जी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार होने की बात को भी ऐसे ही खारिज नहीं किया जा सकता है। बकौल लेखिका प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते थे लेकिन इंदिरा सरकार में उनके कद ने उन्हें स्वाभाविक तौर पर उनका उत्तराधिकारी बना दिया था।

उस दिन प्लेन में तत्कालीन लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ ने सबसे पहले सवाल किया कि गुलजारी लाल नंदा किस प्रक्रिया के तहत नेहरू और शास्त्री के निधन के बाद चुने गए थे। जाखड़ ने पूछा कि नंदा के गृह मंत्री होने के चलते ऐसा हुआ था? इस पर प्रणब ने कहा कि ऐसा उनके गृह मंत्री होने के चलते नहीं बल्कि सरकार में नंबर 2 होने के चलते हुआ था। ऐसे में सबको लगा कि प्रणब खुद की दावेदारी पेश कर रहे हैं। इसके बाद जब जाखड़ ने प्रणब से कहा कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर आप की क्या राय है? इस पर प्रणब मुखर्जी ने इस फैसले का समर्थन किया। बाद में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने।

एक और कारण है जिस चलते प्रणब मुखर्जी को राजीव गांधी के खिलाफ समझा गया। दरअसल जब राजीव गांधी को शपथ दिलाने की बात हुई तो कुछ लोगों ने कहा कि उपराष्ट्रपति ही राजीव गांधी को शपथ दिला दें, क्योंकि राष्ट्रपति उस समय देश में नहीं थे। प्रणब मुखर्जी ने इसका विरोध किया और कहा कि राष्ट्रपति को शपथ दिलानी दी जाए। प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति को अपनी शक्तियां सौंप कर नहीं गए हैं। उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाना संवैधानिक और राजनीतिक रूप से सही नहीं होगा। पीसी एलेक्जेंडर ने भी इसका समर्थन किया था।

किताब में ये साफ किया गया है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए कोई दावेदारी नहीं की थी। इंदिरा गांधी के मुख्य सचिव रहे पीसी एलेक्जेंडर ने खुद इस बात को स्वीकारा था कि कुछ लोगों ने राजीव और प्रणब के रिश्ते खराब करने के लिए अफवाहें फलाईं। मुखर्जी खुद मानते थे कि ये गनी खान की शरारत थी, जो पश्चिम बंगाल से ही कांग्रेस के नेता थे और इंदिरा और राजीव सरकार में मंत्री रहे। इस अफवाह को राजीव गांधी के करीबियों ने और हवा दी। उस समय राजीव जिन लोगों से घिरे रहते थे उन्होंने प्रणब और उनके इरादों को लेकर राजीव गांधी को गलत तस्वीर दिखाई।

प्रणब मुखर्जी के मुताबिक राजीव गांधी को लगता था कि उनके लिए प्रणब मुखर्जी के साथ काम करना इतना आसान नहीं होगा इसलिए उन्हें मंत्री पद भी नहीं दिया गया। मुखर्जी का मानना था कि व्यक्ति केंद्रित राजनीति में नेता ऐसे लोगों को चुनौती समझते हैं जो खुद अपना दिमाग चलाते हों।

इसके बाद राजीव गांधी जब 1984 चुनाव में जीतकर लौटे तो प्रणब मुखर्जी को मंत्री पद नहीं मिल सका। बाद में मुखर्जी कांग्रेस कार्यकारी समिति से भी हटा दिए गए थे। फिर उनको प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया। पार्टी में उनको नजरअंदाज किया जाने लगा था। इसके बाद उनको 6 साल के लिए पार्टी से ही निकाल दिया गया। प्रणब मुखर्जी ने इसके बाद अपनी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई। हालांकि 1988 के त्रिपुरा चुनाव के बाद प्रणब मुखर्जी की कांग्रेस में वापसी हुई।

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