कुलभूषण जाधव के मामले में हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अंतरिम फैसला यह दिया है कि अगस्त के महीने तक पाकिस्तान उसे सजा न दे। अदालत के अंतिम फैसले का वह इंतजार करे। अब प्रश्न यह है कि पाकिस्तान क्या करेगा? पाकिस्तान के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि वह जाधव को अगस्त तक फांसी पर न चढ़ाए।
इसका कारण स्वयं पाकिस्तान ही है। यदि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला नहीं मानना है तो उसने अपने वकील को जाधव के खिलाफ जिरह करने को वहां भेजा ही क्यों? यदि भेजा तो इसका अर्थ स्पष्ट है कि वह इस मामले में इस अदालत का क्षेत्राधिकार स्वीकार करता है। अब यदि वह इस अदालत के अभिमत का उल्लंघन करेगा तो सारी दुनिया में उसकी थू-थू हो जाएगी। इसीलिए पाकिस्तान के फौजियों और नेताओं को चाहिए कि वे अपनी इज्जत को बचाने की कोशिश करें। अदालत की इज्जत करें तो उनकी इज्जत अपने आप बच जाएगी।
दूसरी बात यह कि पाकिस्तान के वकील ने डेढ़ घंटे तक कौन से तथ्य पेश किए और कौन से तर्क किए, जिनसे यह सिद्ध होता कि जाधव भारतीय जासूस था और उसे दूतावासीय सुविधाएं नहीं मिल सकती थीं ? अब तो पाकिस्तान को मजबूर होकर उसे भारतीय दूतावास की सुविधाएं मुहैया करानी पड़ेंगी। यदि पाकिस्तान अदालत के इस फैसले का उल्लंघन करेगा तो भारत सुरक्षा परिषद में जा सकता है। पाकिस्तान पर उद्दंड राज्य (रोफ स्टेट) होने का इल्जाम लगेगा।
यह ठीक है कि हमारी राष्ट्रीय अदालतों की तरह हेग की अदालत के पास अपना फैसला लागू करने के लिए डंडे का जोर नहीं है लेकिन उसकी नैतिक सत्ता सारी दुनिया मानती है। क्या पाकिस्तान इस समय विश्व जनमत को अपने विरुद्ध करने की तैयारी में है? बेहतर तो यह होगा कि पाकिस्तान की फौज और उसकी फौजी अदालत दोनों देशों के नेताओं और कूटनीतिज्ञों को आपस में बात करने दें। यह मामला ऐसा नहीं है कि इसे दोनों देश आपस में बातचीत से न सुलझा सकें। आश्चर्य की बात है कि दोनों देशों के नेता मामूली मसलों पर एक दूसरे को फोन करते रहते हैं लेकिन इस नाजुक मसले पर, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बदनामी का डर है, आपस में कोई बात ही नहीं कर रहे हैं।
डा. वेद प्रताप वैदिक
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