Cash-For-Query Case: महुआ मोइत्रा पहली नहीं, 2005 में 11 सांसद हुए थे पेश; जानें संसद की आचार समिति के बारे में…

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संसदीय आचार समिति तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ कैश फोर क्वैरी की शिकायतों की जांच कर रही है। दरअसल महुआ मोइत्रा पर आरोप हैं कि उन्होंने व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी को लोकसभा में प्रश्न पूछने के लिए अपने संसदीय लॉगिन की एक्सेस दी थी। लोकसभा सांसद मोइत्रा पर हीरानंदानी की ओर से संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप लगाया गया है।

हीरानंदानी ने आरोप लगाया था कि महुआ मोइत्रा ने अपनी लोकसभा ई-मेल आईडी शेयर की थी ताकि वह अडानी समूह को लक्षित करने वाली अपनी जानकारी भेज सकें और वह संसद में सवाल उठा सकें। हीरानंदानी ने दावा किया कि महुआ मोइत्रा ने बाद में हीरानंदानी को लॉगिन दिया।

2005 का कैश फोर क्वैरी मामला

ऐसा नहीं है कि ऐसा मामला पहली बार सामने आया है। साल 2005 में, दोनों सदनों ने 10 लोकसभा सांसदों और एक राज्यसभा सांसद को निष्कासित किया था। जिन पर पैसे के लिए संसद में प्रश्न पूछने के लिए सहमत होने का आरोप था।

आचार समिति है क्या?

आइए आपको संसद की आचार समिति के बारे में बताते हैं। लोकसभा की आचार समिति के बारे में लोकसभा की नियमावली में बताया गया है। इसके अनुसार लोकसभा में एक आचार समिति होगी जिसमें 15 सदस्य होंगे तथा इनका कार्यकाल 1 वर्ष का होगा। आचार समिति के सदस्यों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा होगी। यह समिति लोकसभा की कार्यवाही के दौरान किसी सदस्य द्वारा किये गए अनैतिक आचरण के संबंध में शिकायतों की सुनवाई करेगी जिसे लोकसभा अध्यक्ष द्वारा संज्ञान में लिया गया हो। समिति लोकसभा के सदस्यों के लिये आचार संहिता का निर्माण करेगी तथा उसे समय-समय पर इसमें संशोधन एवं बदलाव करने का अधिकार होगा। इस समिति के लिये निर्दिष्ट किसी शिकायत पर प्राथमिक जांच होगी। जांच पूरी होने के बाद समिति द्वारा की गई सिफारिशों को एक रिपोर्ट के तौर पर लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। लोकसभा अध्यक्ष इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की अनुमति देंगे जिसके बाद इस पर सदस्यों द्वारा चर्चा या सवाल-जवाब किया जाएगा। इस प्रकार की चर्चा आधे घंटे से अधिक की नहीं होगी। चर्चा के बाद सदस्यों की सहमति या असहमति के आधार पर इस प्रस्ताव को पारित किया जाएगा।

आचार समिति का इतिहास

1996 में दिल्ली में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में पहली बार दोनों सदनों के लिए नैतिकता पैनल का विचार सामने आया। तत्कालीन उपराष्ट्रपति (और राज्यसभा के सभापति) के आर नारायणन ने 4 मार्च, 1997 को उच्च सदन की आचार समिति का गठन किया। 1997 में लोकसभा के मामले में, सदन की विशेषाधिकार समिति के एक अध्ययन समूह ने एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की थी। लेकिन इसे लोकसभा द्वारा लागू नहीं किया जा सका।

13वीं लोकसभा के दौरान विशेषाधिकार समिति ने अंततः एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की। साल 2000 में एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया, जो 2015 में सदन का स्थायी हिस्सा बन गई।

शिकायत करने की प्रक्रिया

कोई भी व्यक्ति किसी सांसद के खिलाफ किसी अन्य सांसद के माध्यम से कथित कदाचार के सबूत और एक हलफनामे के साथ शिकायत कर सकता है। यदि सांसद स्वयं शिकायत करता है तो शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं है। सदन के अध्यक्ष किसी सांसद के खिलाफ कोई भी शिकायत समिति को भेज सकते हैं।

समिति केवल मीडिया रिपोर्टों या विचाराधीन मामलों पर आधारित शिकायतों पर विचार नहीं करती है। किसी शिकायत की जांच करने का निर्णय लेने से पहले समिति प्रथम दृष्टया जांच करती है। यह शिकायत का मूल्यांकन करने के बाद अपनी सिफारिशें करती है। समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है, जो सदन से पूछते हैं कि क्या रिपोर्ट पर विचार किया जाना चाहिए। रिपोर्ट पर आधे घंटे की चर्चा का भी प्रावधान है।

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