अटल बिहारी वाजपेयी के अटल इरादों की मिसाल था देश का परमाणु परीक्षण। 11 मई को भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया के सभी बड़े देशों के होश उड़ा दिये थे। इस परमाणु परीक्षण की कहानी खासी दिलचस्प है। इस कहानी की शुरुआत 1996 से होती है। जब आम चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया ।
1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद समारोह में मौजूद पीवी नरसिंह राव ने उन्हें एक पर्ची सौंपते हुए कहा था-इसे अकेले में पढ़िएगा, पर्ची में लिखा था। ‘एन पर कलाम से जल्द बात करें।’
अगले दिन वाजपेयी और कलाम की मुलाकात हुई। एन का मतलब न्यूक्लियर यानी परमाणु परीक्षण से था। वाजपेयी ने कलाम को हरी झंडी तो दिखा दी, लेकिन मात्र 13 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई। यह वह दौर था जब वैज्ञानिक परमाणु परीक्षण के लिए अनुमति की प्रतीक्षा में थे। राव ने भी प्रधानमंत्री रहते समय इस प्रस्ताव पर चर्चा की थी, लेकिन सहमति नहीं बन पाई। इस बीच भारत में अमेरिकी राजदूत को इसकी भनक लग गई कि भारत परमाणु परीक्षण चाहता है। उन्होंने इस पर अमेरिकी आपत्ति से प्रधानमंत्री को अवगत कराया। अमेरिकी राजदूत को भनक कहां से लगी। यह आज भी रहस्य के घेरे में है।
बाद में प्रधानमंत्री बने एचडी देवगौड़ा ने भी वैज्ञानिकों को हरी झंडी दिखाई। लेकिन उनकी सरकार भी ज्यादा दिन नहीं टिकी। 1998 में फिर चुनाव हुए और वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। 15 मार्च, 1998 की आधी रात को वाजपेयी ने कलाम को फोन कर यह सूचना दी कि वह उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने जा रहे हैं। लिहाजा वह सुबह नौ बजे आकर उनसे मिलें ।लेकिन कलाम ने फैसला किया कि वह सरकार में शामिल नहीं होंगे और इसके बजाय परमाणु परीक्षण को आगे बढ़ायेंगे ।
अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें इसकी अनुमति देने के साथ ही शुभकामनाएं भी दीं। तब तक अमेरिका मान चुका था कि भारत ने परमाणु बम बना लिया है और वह उसका परीक्षण कभी भी कर सकता है। 14 अप्रैल, 1998 को नई दिल्ली दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने का दबाव डाला। तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि भारत अगले महीने ही परमाणु परीक्षण करने जा रहा है। फिर 11 मई यानी परमाणु परीक्षण का दिन आया। चूंकि उस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी इसलिए वामपंथी इस पर सवाल उठाने लगे कि अहिंसा की प्रतिमूर्ति गौतम बुद्ध से जुड़े दिन को ही परमाणु परीक्षण के लिए क्यों चुना गया?। जबकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रपति केआर नारायणन के विदेश दौरे से लौटने की प्रतीक्षा हो रही थी। वह 10 मई को स्वदेश लौटे। उनकी वापसी का इंतजार इसलिए किया गया ताकि परमाणु परीक्षण पर दूसरे देशों की प्रतिक्रिया के दौर में महामहिम स्वदेश में ही रहें।
अमेरिका के जासूसी उपग्रह प्रत्येक तीन घंटे पर भारत के ऊपर से गुजरते थे। ऐसे में योजना बनाई गई कि जब वे पोखरण के ऊपर से गुजरने वाले हों तब परीक्षण स्थल पर धुआं कर दिया जाए ताकि अमेरिका को लगे कि लोग खाना पका रहे हैं।
परमाणु बम को मुंबई से जैसलमेर और फिर पोखरण तक पहुंचाना एक कठिन कार्य था। मुंबई पूरी रात जगी रहती है। सिर्फ रात में दो-तीन घंटे ही ही उसकी रफ्तार कुछ सुस्त पड़ती है। इसी दौरान भाभा आणविक शोध केंद्र से बिना किसी खास तामझाम के उसे हवाई अड्डे तक पहुंचाया गया।
तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को भी कोई भनक नही थी। पीएमओ ने साफ हिदायत थी कि इसकी चर्चा किसी से भी नहीं करनी है।
भारत ने 11 मई के बाद 13 मई को भी परीक्षण किया। परीक्षण के लिए पहले सुबह नौ बजे का समय तय था, परंतु हवा का रुख पूर्व से पश्चिम की ओर होने के कारण परीक्षण को रोका गया। इस बीच अचानक हवा का रुख पश्चिम से पूर्व की तरफ हुआ और तीन बजकर 45 मिनट पर सफलतापूर्वक परीक्षण संपन्न होने के साथ ही भारत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हो गया।
उस दौरान खुदाई के समय गलती से बुलडोजर एक बोल्डर से टकरा गया। बोल्डर लुढ़कते हुए सॉफ्ट की तरफ बढ़ा। अगर वह नहीं रुकता तो काफी नुकसान होता, लेकिन वह एक जगह पर जाकर अपने आप रुक गया। आधुनिक सूचना और खुफिया तंत्र में अपने को सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करने वाले पश्चिमी राष्ट्र 1998 में भारत की परमाणु परीक्षण योजना को भांपने में पूरी तरह नाकाम रहे। 11 मई 1998 का पोखरण परीक्षण सही मायनों में एक सफल सर्जिकल स्ट्राइक था। शास्त्री जी ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया था और वाजपेयी ने उसमें जय विज्ञान जोड़कर उसे एक नया क्षितिज दिया।
ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन