उत्तराखंड की स्थिति राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर कमोबेश सभी अन्य क्षेत्रों में भी बुरी स्थिति में है। पिछले 18 सालों में कई सरकारें आईं और चली गईं। लेकिन सियासी गलियों के दिग्गज भी अड़ियल डॉक्टरों का इलाज नहीं कर सके। स्वास्थ्य महकमे की तरफ नजर डाले तो नजर आता है कि, प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की स्थिति बहुत खराब है। पहाड़ों में डॉक्टर चढ़ना नहीं चाहते वहीं मरीजों को प्राथमिक स्वास्थ्य की भी सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की सेहत तो पूरी तरह से भगवान के भरोसे है। हालत यह है कि सर्दी जुकाम की दवाई के लिए भी मरीजों को पहाड़ो से मैदानों की तरफ आना पड़ता है। आंकड़ो में नजर डाले तो पता चलता है कि, सूबे मे सरकारी अस्पलातों की संख्या 893 है जिनमें हजार से ज्यादा पद सालों से खाली पड़े हैं। और वह भी अधिकांश पर्वतीय अस्पतालों में पहाड़ी इलाको में ना सिर्फ डॉक्टरों की कमी है बल्कि अन्य कर्मचारियों से लेकर दवाओं तक की कमी बनी हुई है। डीजी हेल्थ डॉक्टर टी सी पंत भी इसे स्वीकारते हैं।

सरकारी चिकित्सा सेवाओं की बदहाल स्थिति के कारण निजी अस्पतालों और डॉक्टरों की शरण मे जाना लोंगो की मजबूरी बन गई है। प्रदेश भऱ में इस वक्त छोटे बड़े करीब 600 निजी अस्पताल व नर्सिंग हैं। वहीं तेजी से निजी अस्पताल फल-फूल रहे हैं। आईये आंकड़ों के जरिये देखते हैं कि, प्रदेश में कितने डॉक्टरों के पद खाली हैं।

प्रदेश में कुल 2775 डॉक्टरों की दरकार 1081 डॉक्टर ही प्रदेश में हैं उपलब्ध हाल ही मे 478 डॉक्टरों की भर्ती की गई थी, आधे डॉक्टरों ने ही ज्वाइन किया। सूबे में 133 डेंटिस्टों की जरुरत लेकिन 69 ही हैं उपलब्ध, राज्य में 570 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की दरकार लेकिन हैं 285

उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जो भौगोलिक दृष्टि से पहाड़ों से घिरा है। लेकिन हालत यह हैं की प्रदेश की सरकारी डॉक्टर पहाड़ो मे जाना नही चाहते। सरकार हर संभव कोशिश कर रही है की किसी प्रकार से डॉक्टरों को पहाड़ चढ़ाया जा सके। इसके लिये प्रदेश में बेहद ही सस्ते में मेडिकल की पढ़ाई सरकार द्वारा कराई जाती है। जिसके बाद नए डॉक्टरों से बांड भी साइन कराया जाता है, जिसमें पहाड़ो में अपनी सेवाएं देने की बातें होती हैं, लेकिन हालत यह है कि पढ़ाई के बाद डॉक्टर पहाड़ी इलाकों में सेवा देने से साफ मना कर देते हैं। जिस तरह से उत्तराखंड के चिकित्सा विभाग में सैकड़ों पद खाली हैं। उससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के आम आदमी जो पहाड़ों में रहते हैं उनका इलाज किनके हाथों से होगा। और आखिर क्यों आर्थिक रुप से कमजोर शख्स छोटी-छोटी बीमारियों के अभाव में दम तोड़ रहा है।

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