जानिए क्या है Loss and Damage फंड, जिसकी COP-27 के बाद पूरे विश्व में हो रही है चर्चा ओर भारत का इसको लेकर क्या रहा है रूख

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जानिए क्या है Loss and Damage फंड जिसकी COP-27 के बाद पूरे विश्व में हो रही है चर्चा ओर भारत का इसको लेकर क्या रहा है रूख - APN News
Loss and Damage Fund announcement

रविवार को मिस्र के शर्म-अल-शेख में खत्म हुआ संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-27) विकासशील देशों के लिए एक बड़ी खुशखबरी लेकर आया. इस दौरान “हानि और क्षति” निधि (Loss and Damage Fund) नामक ‘ऐतिहासिक’ समझौता हुआ, जिसका मकसद जलवायु आपदाओं के चलते गंभीर रूप से प्रभावित कमजोर देशों के को धन मुहैया कराना है.

क्या बोले आयोजक?

हालांकि, ये सौदा एकदम सही नहीं था, क्योंकि इसमे कई प्रमुख सुझावों को लेकर कोई गौर नहीं किया गया है. मिस्र के विदेश मंत्री और मिस्र में COP-27, UN जलवायु शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष समी शौकरी ने कहा कि “हमें इस अवसर पर पहुंचने के लिए चौबीसों घंटे काम किया, दिन और रात, लेकिन एक लाभ, एक उच्च उद्देश्य, एक सामान्य लक्ष्य के लिए काम करने में हम एकजुट हुए. अंत में हमने इस सौदे को को उसके अंजाम तक पहुंचा दिया है.”

COP 27
Loss and Damage Fund

इस समझौते के बाद भुगतान करने के लिए दुनिया के विकासशील देशों को अमीर देशों पर निर्भर रहने के बजाय वित्तीय संस्थानों सहित अन्य विभिन्न प्रकार के मौजूदा स्रोतों से धन मिल सकेगा. समझौते के अनुसार इस फंड में शुरुआत में विकसित देश, निजी और सरकारी संस्थान तथा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान योगदान करेंगे. हालांकि अभी यह फंड बनने, नियम तय होने, उसमें धन आने और देशों को वितरित होने में समय लग सकता है.

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क्या है लॉस एंड डैमेज फंड

हानि और क्षति कोष (Loss and Damage Fund) जलवायु परिवर्तन को लेकर संवेदनशील विकासशील देशों (Developing Countries) को हुए नुकसान की भरपाई करने में मदद करेगा. वहीं इस मामले में COP-27 ने एक ट्वीट में कहा कि “शर्म अल-शेख में आज COP-27 में इतिहास रचा गया है, क्योंकि सभी देश सहायता के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित ‘नुकसान और क्षति’ कोष की स्थापना पर सहमत हो गए हैं.“

इस फंड के लिए, सरकारों ने साल COP-28 में नई फंडिंग व्यवस्था और फंड दोनों को कैसे संचालित किया जाए, इस पर सिफारिशें करने के लिए एक ‘संक्रमणकालीन समिति’ (Transitional Committee) स्थापित करने पर भी सहमति जताई है. संक्रमणकालीन समिति की पहली बैठक मार्च 2023 के अंत से पहले होने की उम्मीद है.

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (Inter Governmental Panel) ने संकेत दिया है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 45 फीसदी की कमी आनी चाहिए.

एक दिन के लिए बढ़ाया गया था सम्मेलन

दुनिया में जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को लेकर जारी गतिरोध के बीच मिस्र में आयोजित कॉप27 शिखर सम्मेलन की अवधि को एक दिन के लिए बढ़ाया गया था. ऐसा कार्बन न्यूनीकरण कार्यक्रम (Carbon Neutral Program), हानि और क्षति और जलवायु से जुड़े वित्तपोषण जैसे प्रमुख मुद्दों पर जारी गतिरोध को खत्म करने के प्रयास के लिए किया गया था.

एक ऐतिहासिक कदम : भारत

COP-27 में भारत की तरफ से केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि यादव ने कहा COP-27 ऐतिहासिक है क्योंकि इसने हानि और क्षति निधि (Loss and Damage Fund) पर समझौता किया है. दुनिया ने इसके लिए बहुत लंबा इंतजार किया है.

Bhupender Yadav at COP 27

भूपेंद्र यादव ने कहा कि “हम इस बारे में ध्यान दें कि हम कृषि और खाद्य सुरक्षा में जलवायु कार्रवाई के बारे में चार वर्ष काम करने का कार्यक्रम स्थापित कर रहे हैं. कृषि लाखों छोटे किसानों की आजीविका का मुख्य आधार है जो जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह से प्रभावित होगी. इसलिए हमें उन पर शमन जिम्मेदारियों का बोझ नहीं डालना चाहिए. वास्‍तव में भारत ने अपनी कृषि में बदलाव को अपने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) से बाहर रखा है. हम सिर्फ ब‍दलाव पर काम करने का कार्यक्रम भी स्थापित कर रहे हैं. अधिकांश विकासशील देशों के लिए केवल बदलाव की तुलना डीकार्बोनाइजेशन से नहीं, बल्कि निम्न-कार्बन विकास से की जा सकती है.“

वहीं, संयुक्त राष्ट्र (United Nations) महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, “मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं. यह काफी नहीं है, लेकिन टूटे भरोसे को दोबारा जोड़ने के लिए जिस राजनीतिक संकेत की जरूरत थी, उस दिशा में यह आवश्यक कदम है.”

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क्या थी EU और अमेरिका की मांग?

यूरोपियन यूनियन और अमेरिका की मुख्य मांग थी कि चीन और प्रदूषण फैलाने वाले अन्य बड़े देशों को भी इस फंड में योगदान करना चाहिए. उनका कहना था कि चीन और सऊदी अरब जैसे देशों को 1992 में विकासशील का दर्जा दिया गया था. जो आज यानि तीन दशकों के बीत जाने के बाद काफी तरक्की कर चुके हैं. आज चीन, अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. साथ ही वह अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जन करने वाला देश भी है. COP-27 समझौते में चीन, भारत और सऊदी अरब जैसे देशों के फंड में योगदान करने की कोई बात नहीं है, लेकिन यह जरूर कहा गया है कि फंडिंग के स्रोत बढ़ाए जाने चाहिए.

Bhupender Yadav at COP 27

एजेंडा में नहीं था, लेकिन फिर भी बनी सहमति

दो सप्ताह पहले जब COP-27 सम्मेलन शुरू हुआ, तब अमेरिका और यूरोपियन देश कह रहे थे कि हम लॉस एंड डैमेज फंड (Loss and Damage Fund) को एजेंडा में भी नहीं रखेंगे. उनका कहना था कि जब तक बड़े विकासशील देश और समृद्ध देश इस फंड में पैसा नहीं देंगे तब तक वे भी इसमें योगदान नहीं करेंगे, लेकिन अंतिम फैसले में यह बात नहीं है. दो हफ्ते में बहुत कुछ बदल गया ओर ये समझौता हो गया.

क्या है मुल मुद्दा?

पिछले कई वर्षों से अमेरिका सहित पश्चिमी देश वैश्विक तापमान (Global Warming) को औद्योगिक काल से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री ऊपर सीमित रखने के लिए विकासशील देशों पर ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse Gas) का उत्सर्जन घटाने या रोकने पर अधिक जोर दे रहे हैं. साल 2015 में हुए पेरिस समझौते में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए जरूरी है कि तमाम देश ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक काल (Pre-Industrialisation) के स्तर से 1.5 डिग्री से ऊपर न जाने दें और ‘बेहतर यही होगा’ कि इसे 2 डिग्री से नीचे सीमित रखा जाए.

100 बिलियन डॉलर मुहैया कराने के लक्ष्य से पिछ रहे हैं विकसित देश

2009 में कोपेनहैगन में आयोजिक हुई कॉप-15 के दौरान विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन रोकने के उपायों के तहत विकासशील देशों को 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर मुहैया कराने के सामूहिक लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्धता जताई थी. जिसके बाद इसको मेक्सिको के कैनकन (Cancún) में आयोजित की गई कॉप-16 के दौरान इस लक्ष्य को अमलीजामा पहनाया गया, और पेरिस में हुई कॉप-21 के दौरान इस मदद को वर्ष 2025 तक जारी रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया.

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विकसित देशों ने 2020 में विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए 83.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही दिए जो कि 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य से 16.7 बिलियन डॉलर कम थे. अनुमानों के अनुसार, 100 अरब डॉलर जुटाने का लक्ष्य 2023 में ही पूरा हो पाएगा.

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भारत की क्या थी मंशा?

भारत समेत विकासशील और गरीब देश लंबे समय से इस फंड की मांग कर रहे थे. दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपियन यूनियन इसके खिलाफ थे, क्योंकि जलवायु परिवर्तन से होने वाले बड़े नुकसान के लिए सीधे वे जिम्मेदार माने जाएंगे और आर्थिक रूप से उन्हें भरपाई करनी पड़ेगी. गरीब देशों का तर्क है कि हम अमीर देशों में हो रहे ज्यादा उत्सर्जन का परिणाम भुगत रहे हैं, इसलिए इस समस्या से निपटने में उन्हें हमारी मदद करनी चाहिए.

India LiFE

इसके अलावा जी 77 + चीन (G-77 + China) ग्रुप (इसमें भारत भी शामिल है) की अगुवाई इस बार पाकिस्तान कर रहा था और इसका नैतिक फायदा भी इन देशों को मिला, क्योंकि पाकिस्तान में इस साल सितंबर में आई दशकों की सबसे भीषण बाढ़ में वहां की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी. पाकिस्तान की जलवायु मंत्री शेरी रहमान ने कहा, यह हमारी 30 साल की यात्रा का नतीजा है. रहमान ने जलवायु कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में ही कहा था कि, “जो पाकिस्तान में हुआ, वह वहीं तक सीमित नहीं रहेगा.” उनके इस बयान को लेकर भी काफी चर्चा हुई ओर अन्य देशों को भी एक सख्त संदेश गया.

COP-27 के दौरान ओर क्या कुछ हुआ?

COP-27 ने विकासशील देशों में जलवायु प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा देने के लिए COP-27 में एक नए पंचवर्षीय कार्य कार्यक्रम की शुरुआत की.   

सदस्य देशों ने पांच प्रमुख क्षेत्रों: बिजली, सड़क परिवहन, इस्पात, हाइड्रोजन और कृषि में 25 नई सहयोगी कार्रवाइयों का पैकेज लॉन्च किया.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अगले पांच वर्षों के भीतर विश्व में हर किसी को प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली द्वारा सुरक्षित करने के लिए 3.1 बिलियन अमरीकी डालर की योजना की घोषणा की.

नेट-जीरो (Net Zero) प्रतिबद्धताओं पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समूह ने COP-27 पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जो उद्योग, वित्तीय संस्थानों, शहरों और क्षेत्रों द्वारा विश्वसनीय, जवाबदेह नेट-जीरो प्रतिज्ञाओं को सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शन के रूप में कार्य करती है.

जलवायु आपदाओं से पीड़ित देशों को धन उपलब्ध कराने के लिए COP-27 में ग्लोबल शील्ड फाइनेंसिंग फैसिलिटी नामक G7 के नेतृत्व वाली योजना शुरू की गई थी.

डेनमार्क, फ़िनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड, स्लोवेनिया, स्वीडन, स्विटज़रलैंड और बेल्जियम के वालून क्षेत्र ने कुल 105.6 मिलियन अमरीकी डॉलर की नई फ़ंडिंग की घोषणा करते हुए तत्काल जलवायु अनुकूलन को लक्षित करने वाले वैश्विक पर्यावरण सुविधा फ़ंड के लिए और भी अधिक समर्थन की आवश्यकता पर बल दिया. निम्न-स्तर और निम्न-आय वाले राज्यों की आवश्यकताएं.

COP-27 के साथ समानांतर में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन में घोषित नई इंडोनेशिया जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप, अगले तीन से पांच वर्षों में 20 बिलियन अमरीकी डालर जुटाएगी ताकि एक उचित ऊर्जा संक्रमण को गति दी जा सके.

फ़ॉरेस्ट एंड क्लाइमेट लीडर्स पार्टनरशिप के लॉन्च के साथ वन संरक्षण पर महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जिसका उद्देश्य 2030 तक वन हानि और भूमि क्षरण को रोकने के लिए सरकारों, व्यवसायों और सामुदायिक नेताओं द्वारा कार्रवाई को एकजुट करना है.

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