सुदंर पहाड़, हरियाली, शांति और मंदिरों के लिए जाना जाने वाला उत्तराखंड एक बार फिर से गुलजार है। यहां का रुपकुंड का आखिरी बेसकैंप बघुवाशा ब्रह्मकमल के फूलों की खुशबू से भर उठा है। इस इलाके में सबसे दुर्लभ प्रजाति के ब्रह्मकमल और नीलकमल खिलते हैं।

नाम से ही पता चलता है कि ये ब्रह्मा का कमल है। अनेक कहानियों के अनुसार महादेव शिव को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा ने ब्रह्माकल की रचना की थी।

देवी नंदा का वाहन बाघ

जहां ये कमल खिलता है वहां का नाम बघुवाशा है इसके पीछे भी कहानी है, “उत्तराखंड के लोगों का कहना है कि भगवान शिव, माता नंदा के साथ यात्रा कर रहे थे, तब नंदा देवी ने अपने वाहन बाघ के यहीं छोड़ा था इसलिए इस जगह को बघुवाशा भी कहा जाता है।”

मां नंदा का प्रिय फूल ब्रह्मकमल ही है। इसे नन्दाष्टमी पर ही तोड़ा जाता है पर कई अहम बातों का ख्याल रखना पड़ता है।

इस फूल की खुशबू मनमोहक है, इसकी खुशबू अपने गिरफ्त में लोगों को जल्दी लेती है। इस बात का उल्लेख महाभारत में देखने को मिलता है। जिसे पाने के लिए द्रौपदी व्याकुल हो उठी थी।

ब्रह्मा को चढ़ानी पड़ी आंख

एक और कहानी के अनुसार, प्रभु शिव को ब्रह्मा ने 1,000 कमल चाढाएं थे जिसमें से एक कम पड़ गया था, तो उन्होंने अपनी आंख नीकालकर चढ़ा दी। तभी से शिव जी को एक और नाम मिला “कमलेश्वर” और ब्रह्मा जी को कमल नयन भी कहते हैं।

ये फूल नाम के साथ जितना अनोखा है उतना ही अनोखा इसका काम भी है। ये फूल बाकी फूलों की तहर सुबह नहीं खिलता है। ये सूर्यअस्त के बाद ही खिलता है। रात 12 बजे तक पुरी तरह फूल तैयार हो जाता है।

बता दे कि ये फूल उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणांचल प्रदेश और कश्मीर में पाया जाता है। वहीं भारत के सिवा ये पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार में भी पाया जाता है

brahma kamal in india mahadev

61 प्रजातियां

ब्रह्मकमल एस्टेरेसी फैमिली का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहेलिया, कुसुम और भृंगराज इसी फैमिली के फूल हैं। दुनियाभर में ब्रह्मकमल की कुल 210 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें भारत में 61 प्रजातियां मौजूद हैं। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल,फैन कमल, कस्तूरबा कमल प्रजाति के फूल बैगनी रंग के होते हैं।

14500 फीट की ऊंचाई पर ये कमल जुलाई से सितम्बर तक खिलते हैं लेकिन इस बार कोरोना के कारण वातावरण में बदलाव आया है। इसके कारण यहां लंबे समय तक बारिश होने से ब्रह्मकमल अक्टूबर में भी खिले हुए।

रूपखंड से बघुवाशा पहुंचने में तीन दिन लगते हैं। ये यात्रा 27 किलोमीटर की है इसमें 20 किमी खड़ी चढाई करनी होती है। 12 साल में एक बार नंदा देवी राजजात यात्रा इस मार्ग से गुजरती है। अब ये यात्रा 24 में होने वाली है।

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