डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के ससुराल में आज भी अंधेरा है। अब आप यह जानने के लिए उत्साहित हो रहे होंगे, कि आखिर डिप्टी सीएम केशव मौर्य की ससुराल कहां है, और क्यों अंधेरा है?

Keshav Prasad Mauryaकेशव मौर्य के गृह जनपद कौशांबी में खूझा गांव की बदहाल तस्वीर उनकी विकास कार्यो की काबिलियत बयां कर रही है। जहां आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी अंधेरा ही अंधेरा है। सरकार ने भले ही पंडित दीनदयाल ग्रामीण ज्योति योजना के तहत गांव-गांव बिजली पहुंचाने का सख्त फरमान विधुत विभाग को सुनाया हो, लेकिन केशव मौर्य के ससुरालियों की बदनसीबी तो देखिए विद्युत् विभाग की तरफ से विद्युतीकरण की जारी सूची में भी खूझा गांव का नाम शामिल नही है।

सिराथू तहसील से करीब 25 किलो मीटर की दूरी पर खूझा गांव है। 300 सौ से अधिक आबादी वाले इस गांव में आजादी के बाद से अब तक लोगों को बिजली नसीब नहीं हुई। खूझा गांव के लोगों को बड़ी उम्मीदें थी कि इस गांव का दामाद केशव मौर्य प्रदेश का डिप्टी सीएम है, अब उनके गांव में बिजली के साथ-साथ विकास की वो तमाम राह भी खुल जायेगी, लेकिन ससुरालियों की यह उम्मीदें महज एक सपना ही साबित हो रही है।

आधुनिक युग मे बदहाली का दंश झेल रहे खूझा गांव के लोग शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही पीछे है। गांव के बच्चे ढ़िबरी के सहारे पढ़ाई लिखाई तो जरूर करते हैं, पर उनके भविष्य पर बिजली की कमी अंधेरा की कुंडली मार कर बैठी है। विकास की राह यहाँ से कोसो दूर है। इस भीषण गर्मी में लोगों का बुरा हाल है। दहेज में मिला टीवी फ़्रिज कूलर आदि आधुनिक समान कूड़े के समान एक कोने में पड़े है।

गांव के लोग बताते है कि खूझा गांव में बहन बेटियों की शादी भी बमुश्किल होती है। गांव में जिन लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक है वो तो गेस्ट हाउस से शादी विवाह करते है और जो गरीब तबके के लोग है उनके बहन बेटियों की डोली आज भी पेट्रो मैक्स यानी कि गैस की रोशनी में उठती है। ऐसे में गरीब लोग गेस्ट हाउस और जनरेटर आदि का भारी भरकम खर्च वहन करने में अक्षम हैं।

खूझा गांव के लोगों में तब भी यही उम्मीदें जागी थी जब केशव 2012 में सिराथू से विधायक बने थे, 2014 में वो फूलपुर संसदीय सीट से टिकट पाये और सांसद बन गए। दो सालों के बीच में केशव विधायक रहते हुए भी अपने ससुरालियों को बिजली नहीं दिला सके। जब केशव प्रदेश के डिप्टी सीएम बन गए तो उनके ससुरालियों में फिर से दूसरी बार उम्मीदों की आश जाग पड़ी थी, लेकिन तीन महीने बीतने को है आज भी बिजली नही नसीब हुई।

देश और प्रदेश में कई सियासी उठा पटक के बाद भी खूझा गांव की ये बदहाल तस्वीरें समय की करवट को कोस रही है। गांव के लोगों को इस बात का आज भी मलाल है कि प्रशासनिक अफसरों ने भी इस गांव की तरफ नजरें उठाकर नहीं देखा, इतना ही नहीं उनकी नुमाइंदी करने वाले राज नेताओं ने भी इस ओर अपनी दिलचस्पी नहीं दिखाई। समय के आधुनिकता के साथ बदली ये बदरंग तस्वीरे अब योगी सरकार से रौशन किये जाने की टक टकी लगाए हैं।

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