जिस शहर में मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों के दफ्तर हैं। जिस महानगर में नेता से लेकर नौकरशाह तक बैठते हैं। शहर की खूबसूरती, उसकी सेहत सुधारने के लिए तमाम सरकारी अमला लगा रहता है। उसी शहर में सरकारी विभागों की लापरवाही की भेंट चढ़ गई तीन जिंदगियां। जी हां, हम बात कर रहे हैं नवाबों की नगरी लखनऊ की जहां दो जर्जर इमारतों के धाराशाई होने से एक बच्चे समेत तीन लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। मलबे में तब्दील इमारत के धाराशाई होने के लिए जितनी जिम्मेदार आसमान से बरसती आफत की बारिश है। उससे कम जिम्मेदार शहर को भला चंगा रखने के लिए जिम्मेदारी संभालने वाला नगर निगम भी नहीं है।

प्रदेश के दूसरे इलाकों में भारी बारिश से धाराशाई होती इमारतों को लेकर तो खूब हाय तौबा मची। लेकिन राजधानी में ही जर्जर होती इमारतों की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। ऐसे भवनों को खाली कराने की कोशिश तक नहीं की गई। जिसका नतीजा तीन मौतों के रूप में सबके सामने आया। लखनऊ के हुसैनगंज थाना क्षेत्र में तेज बारिश से पुरानी इमारत भरभराकर गिर गई। इसमें दो लोगों की मौत हो गई। जबकि कई लोग घायल हो गए।

योगी सरकार में मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने अस्पताल पहुंचकर घायलों का हाल चाल जाना। उन्होंने कहा कि हाल ही में एक सर्वे कराया गया था, जिसमें सामने आया था कि पुराने लखनऊ शहर में कई इमारतें जर्जर हालत में पहुंच गई है और उनमें कई लोग भी रह रहे हैं। उन लोगों के पास रहने का कोई दूसरा ठिकाना नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विषय में एक नीति बनाए जाने की जरूरत है। ताकि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।

राजधानी के गणेश नगर इलाके में भी एक पुरानी बिल्डिंग देखते ही देखते जमींदोज हो गई। बिल्डिंग में एक परिवार के छह सदस्य समेत सात लोग रहते थे। लेकिन हादसे के वक्त एक बच्ची और उसकी मां ही बिल्डिंग में थे। दोनों मलबे में दब गए। जब तक उन्हें बाहर निकाला जाता बच्ची ने दम तोड़ दिया था जबकि मां को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसकी हालत बेहतर बताई गई है। ये इमारत करीब 60-70 साल पुरानी बताई जा रही है। इसकी हालत इतनी जर्जर हो गई थी। कि लोग उसके पास से गुजरने से डरते थे। लेकिन नगर निगम या दूसरी सरकारी एजेंसियों ने मकान को खाली कराने की जहमत नहीं उठाई और राजधानी में पिछले दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश को ये इमारत झेल नहीं पाई और धाराशाई हो गई।

अगर नगर निगम सतर्क रहता तो इन लोगों को बचाया जा सकता था। लेकिन नगर निगम के अधिकारी सोते रहे और अभी भी नींद में ही हैं। क्योंकि पुराने लखनऊ शहर में जर्जर भवनों की संख्या एक दो नहीं कई है। पर उनमें रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट कराने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

                                                                                                                     एपीएन ब्यूरो

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