2014 लोकसभा चुनाव से लेकर हाल में हुए दिल्ली एमसीडी चुनाव तक अगर दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो बाकी बचे हर चुनाव में बीजेपी ने अपना परचम लहराया हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब महज कुछ राज्यों में सीमित रह गई है। अब देश में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं ऐसे में विपक्ष ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। बीजेपी की आंधी और मोदी की लहर से बचने के लिए विपक्ष को समझ आ गया है कि सभी को एकजुट होना पड़ेगा क्योंकि यही इस वक्त की मांग है।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष को एकजुट करने के लिए पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी पूरजोर कोशिश कर रहीं हैं। कांग्रेस के साथ-साथ कुछ अन्य दल जैसे सीपीएम और जेडीयू ने भी विपक्ष को एकजुट करने का काम शुरू कर दिया है। हालांकि अभी भी विपक्ष को पूर्णत: एकजुट होने में कुछ अड़चनें हैं। एक तरफ तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी से इस बारे में कोई संपर्क नहीं किया गया है, वहीं दूसरी ओर ओड़िसा की बड़ी पार्टी बीजू जनता दल के अध्यक्ष नवीन पटनायक ने भी अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।

पिछले सप्ताह से कांग्रेस, सीपीएम और जेडीयू ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। यह सभी दल विपक्ष की ओर से एक साझा राष्ट्रपति उम्मीदवार  के लिए चर्चा कर रहे हैं। लेकिन तृणमूल कांग्रेस और बीजेडी की ओर से अभी तक कोई रिस्पॉन्स नहीं आया है। आपको बता दें कि तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम बंगाल के कट्टर विरोधी हैं जो विपक्ष गठबंधन की एक समस्या हो सकती है। और ऐसे में उनके एक साथ आने के आसार बहुत कम हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अभी तक कांग्रेस सहित किसी भी विपक्षी दल के संपर्क न करने से कुछ सवाल उठ रहे हैं। क्या इसका मतलब यह है कि ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में अपना महत्व खो रही हैं? इस बारे में तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद ने कहा, ‘हमें राष्ट्रपति चुनाव के लिए अभी तक किसी दल से कोई संदेश नहीं मिला है। लेकिन हमारे पास खोने को कुछ नहीं है। दीदी ने हमेशा कहा है कि उन्हें कतार में सबसे आखिर में खड़े होने में कोई समस्या नहीं है। उन्होंने नरेन्द्र मोदी सरकार का विरोध करने के लिए सीपीएम सहित सभी विपक्षी दलों से निवेदन तक किया था। उन्होंने अपने लिए कभी किसी विशेष पद की मांग नहीं की, इसके बजाय उन्होंने ताकतवर मोदी के खिलाफ खड़ा होने की चुनौती खुद स्वीकार कर ली थी।

वहीं दूसरी ओर बीजेडी अपने गृह राज्य ओडिशा में सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रही है और इस वजह से पार्टी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इन सभी तथ्यों को देखकर लगता है कि विपक्ष के एकजुट होने में अभी बहुत समस्याएं हैं।

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