Rajasthan के ‘’नए बाल विवाह कानून‘’ का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

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सुप्रीम कोर्ट में Rajasthan सरकार के अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 की धारा 8 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। यूथ बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल कर कहा गया है कि नया विवाह कानून बाल विवाह को सही ठहराता है। यदि बाल विवाह के पंजीकरण की अनुमति दी जाती है तो स्थिति और खतरनाक हो जाएगी। इसके अलावा याचिका में यह भी कहा गया है कि इससे बाल शोषण के मामलों में बढोतरी होगी।

The Rajasthan Compulsory Registration of Marriages (Amendment), 2021 क्‍या है?

17 September 2021 को  भाजपा के विरोध के बीच Rajasthan विधानसभा ने बाल विवाह पर 2009 के अधिनियम में संशोधन के लिए एक विधेयक पारित कर दिया था। राजस्थान विवाह का अनिवार्य पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 (The Rajasthan Compulsory Registration of Marriages (Amendment) Bill, 2021) राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 (Rajasthan Compulsory Registration of Marriages Act, 2009) में संशोधन करता है।

अभी तक राजस्थान में केवल जिला विवाह पंजीकरण अधिकारी (DMRO) ही विवाहों को पंजीकृत करता था। लेकिन शुक्रवार को पारित विधेयक से अब सरकार को विवाह रजिस्टर करने के लिए अतिरिक्त DMRO और ब्लॉक MRO को नियुक्त करने की शक्ति मिली है।

अधिनियम की धारा 8 को लेकर विरोध

इस संशोधन में सबसे ज्‍यादा राज्‍य सरकार का विरोध अधिनियम की धारा 8 के संशोधन को लेकर है। 2021 के संशोधन में कहा गया है कि 21 साल से कम उम्र के दूल्हे और 18 साल से कम उम्र के दुल्‍हन के माता-पिता या अभिभावक को शादी के 30 दिन पहले सूचना देनी होगी।

भाजपा ने दावा किया है था कि नया कानून बाल विवाह को वैध करेगा

राजस्‍थान में विपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा ने राज्‍य सरकार को घेरा था। बहस के दौरान भाजपा नेता और विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया (Gulab Chand Kataria) ने कहा था , मुझे लगता है कि यह कानून पूरी तरह से गलत है। जिन विधायकों ने इसे पारित किया है, उन्होंने इसे नहीं देखा है। विधेयक की धारा 8 बाल विवाह के खिलाफ लागू मौजूदा कानून का उल्लंघन करती है।

राजस्थान में विपक्ष के उप नेता राजेंद्र राठौड़ (Rajendra Rathod) ने कहा था कि मुझे आश्चर्य है कि ऐसा राजस्थान में हुआ, जहाँ बाल विवाह को एक प्रतिगामी प्रथा माना जाता है, और जहाँ 1927 में शारदा अधिनियम (बाल विवाह निरोधक अधिनियम) अस्तित्व में आया। इसे हरविलास शारदा द्वारा पारित किया गया था और इसी से बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में बनाया गया था, लेकिन आज इस विधेयक का पास होना यह साबित करता है कि राजस्थान अभी भी इस प्रतिगामी रिवाज की पकड़ में है।

सरकार का पक्ष

विधानसभा में भाजपा नेताओं द्वारा बिल का कड़ा विरोध करने और बिल के तहत बाल विवाह के पंजीकरण के प्रावधान पर सवाल उठाने के बाद, संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने कहा था , “बिल यह नहीं कहता है कि बााल विवाह मान्य है। बिल कहता है कि विवाह के बाद केवल पंजीकरण आवश्यक है। इसका मतलब यह नहीं है कि बाल विवाह वैध है। यदि जिला कलेक्टर चाहे तो वह बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। यह संशोधन केंद्रीय कानून के विपरीत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया है कि शादियों का अनिवार्य पंजीकरण होना चाहिए। इसलिए विधेयक में बाल विवाह शामिल है।”

यह भी पढ़ें: बाल विवाह को बढ़ावा देता है Rajasthan में पारित नया विधेयक : BJP

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