Tablighi Jamaat का मुद्दा फिर गरमाया, ट्विटर पर उठी मांग #BanTablighiJamaat

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Tablighi Jamaat
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दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात (Tablighi Jamaat) पर कोरोना के प्रसार के आरोपों के बाद अब जमात एक बार फिर कई कारणों से चर्चा में है। जमात पर कई देश प्रतिबंध लगा चुके हैं साथ ही मीडिया रिपोट्स ने दावा किया है कि सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने भी तबलीगी जमात पर बैन लगा दिया है। देश का कहना है कि तबलीगी जमात की विचारधारा कट्टरपंथी है और यह आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देती है।

Saudi Arabia कह चुका है आतंक का प्रवेश द्वार

साऊदी अरब के प्रतिबंध लगाने के बाद भारत में जमात पर बैन लगाने की मांग उठने लगी है। तबलीगी जमात पर बैन लगाने की मांग सबसे पहले विश्व हिंदू परिषद ने की थी। वीएचपी ने इसे आतंकवाद की फैक्ट्री बताया था। आज फिर ट्विटर पर बैन लगाने की मांग उठ रही है। #BanTablighiJamaat ट्रेंड कर र हा है। यह ट्रेंड ट्विटर पर टॉप में है। इसमें हजारों लोग ट्वीट कर चुके हैं।

प्रतिबंध की मांग करने वालों का कहना है कि सऊदी अरब ने जब इस आतंक की फैक्ट्री को बैन कर दिया है तो भारत किस बात का इंतजार कर रहा है। भारत को भी संगठन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। यूजर कह रहे हैं कि जमात ने कोरोना काल में भी लोगों को परेशान किया था। सऊदी अरब ने जब इसे आतंक का प्रवेश द्वार कह कर प्रतिबंध कर दिया तो भारत सरकार को भी कड़ा रुख अपनाना चाहिए।

कई इस्लामिक देशों में प्रतिबंध

इस्लामिक देशों में जमात पर प्रतिबंध के बाद भारत में भी इस पर बैन की मांग जोरों शोरों पर उठने लगी है। विश्व हिंदू परिषद के ट्वीट के बाद यह मुद्दा और गरम हो गया है। तबलीगी जमात से जुड़े लोगों को इस्लाम के बार में जानकारी दी जाती है।

बता दें कि दुनिया भर में कुल 57 इस्लामिक देश हैं। 150 देशों में तबलीगी जमात सक्रिय है। पर ईरान और सऊदी अरब में इस पर पूरी तरह से बैन लगा हुआ है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगाने वाले अधिकतर इस्लामिक देश ही हैं। इन देशों का कहना है कि तबलीगी जमात आतंकवाद को बढ़ावा देता है।

1926 में हुई थी शुरुआत

तबलीगी जमात की शुरुआत साल 1926 में हरियाणा के मेवात जिले से मानी जाती है। इसकी शुरुआत देवबंदी इस्लामी विद्वान मौलाना मोहम्मद इलयास कांधलवी ने एक धार्मिक सुधार आंदोलन के तौर पर की थी। दुनिया भर में तबलीगी जमात से लगभग 35 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। इनमें से 25 करोड़ लोग दक्षिण एशियाई देशों में ही रह रहे हैं।

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