लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में मंत्री श्री राम विलास पासवान का आज दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया, जहाँ वे हृदय की शल्य चिकित्सा के बाद स्वास्थ्य लाभ के लिए भर्ती थे।

शनिवार को ही उनके बेटे चिराग पासवान ने ट्वीट किया था 74 साल के व्यक्ति का अस्पताल में इलाज चल रहा था, और “सर्जरी की स्थिति से गुजरना पड़ा”। आज शाम, 37 वर्षीय ने अपनी मौत की खबर पोस्ट की।

“पापा … अब आप इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मुझे पता है कि आप हमेशा मेरे साथ हैं। आप जहाँ भी हों, मिस पापा,” उनकी पोस्ट पढ़ें, जिसके साथ उन्होंने अपने पिता के साथ एक थ्रोबैक तस्वीर साझा की।

वे बिहार की राजनीति में पांच दशक से एक मजबूत स्तंभ बने रहे। खगड़िया के शहरबन्नी गांव में एक साधारण परिवार में जन्मे पासवान ने छात्रसंघ से राजनीति में कदम रखा था। वह जेपी आंदोलन में भी बिहार में मुख्य किरदार थे। वे देश के दलितों की हित के लिए संघर्ष करते रहे। मृदुभाषी होने के कारण सभी के दिल में उनके लिए जगह थी। बिहार पुलिस की नौकरी छोड़कर पहली बार वर्ष 1969 में वह विधायक बने। वर्ष 1977 में पहली बार मतों के विश्व रिकॉर्ड के अंतर से जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। केंद्र में एनडीए की सरकार हो या यूपीए की, उनका महत्व समान रूप से बना रहा। उनके निधन से राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।

रामविलास पासवान देश के छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे। राजनीति की नब्ज पर उनकी पकड़ इस कदर रही कि वह वोट के एक निश्चित भाग को इधर से उधर ट्रांसफर करा सकते थे। यही कारण है कि वह राजनीति में हमेशा प्रभावी भूमिका निभाते रहे।

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