सुप्रीम कोर्ट की नई गाइडलाइन्स के हिसाब से संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति पर परिवार के सभी सदस्यों का हक होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति घोषित करते हुए इस संपत्ति पर परिवार के कुछ सदस्यों द्वारा किए गए दावे को अस्वीकार कर दिया है।

न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल और न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे की पीठ ने कहा कि परिवार में संयुक्त् संपत्ति के स्वरूप को स्वीकार करने के बाद यदि परिवार का सदस्य पैतृक संपत्ति में से कुछ संपत्ति पर अपना दावा करता है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसी की होगी कि यह उसकी स्व-अर्जित संपत्ति है।

दरअसल कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को भी सही माना है जिसमें संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति घोषित करते हुए संयुक्त परिवार के कुछ सदस्यों के उस दावे को अस्वीकार कर दिया था, जिसमें एक कृषि भूमि को स्व अर्जित संपत्ति बताते हुए कहा गया था कि परिवार के दूसरे सदस्यों का इसपर कोई अधिकार नहीं है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहा कि इस जमीन को उसने खुद अर्जित किया था। न तो वह कोई दस्तावेज पेश कर सका और न ही इस जमीन को स्तोत्र बता सका। इससे साफ है कि वह झूठे तथ्य देकर जमीन हड़पने की कोशिश में था। पीठ ने कहा कि यह साबित करना संपत्ति पर दावा करने वाले की जिम्मेदारी है कि संयुक्त परिवार में होने को बावजूद अमुक संपत्ति उसने खुद अर्जित की थी।

पीठ ने कहा कि हिन्दू लॉ के हिसाब से यह मान्यता है कि हिन्दू परिवार खाने,पूजा व संपत्ति में एक होता है, जब तक कि कानूनी तौर पर बंटवारा न हुआ हो।

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